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ठू अरिहंत १२/
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साधु २७
प्रतिवर्ष विचरते ही रहें। इसमें नए आएंगे तो किसी का भी परिचय न होते हुए भी, व्यक्तिगत पहचान न होते हुए भी गुणात्मक धर्मव्यवहार होते हुए भी श्रावकों और साधुओं किसी को भी कोई तकलीफ नहीं आती है। सुंदर रूप से व्यवस्था चलती है। कोई भी साधु-साध्वी हों वे गुणों के आधार पर पूजे जाते हैं। माने जाते हैं। कितनी अद्भुत-कितनी सुंदर यह व्यवस्था है। राग-द्वेष के भेदभाव मिटाकर वीतराग भाव बढाने की दिशा में आत्मा को अग्रसर करती है। पंचपरमेष्ठी की गुणाश्रित आराधना
जैन शासन में पंचपरमेष्ठि का वाचक जो नवकार महामन्त्र है, उसकी आराधना-जापादि हेतु जो माला है । उसे भी नवकार गिनने के व्यवहार से नवकारवाली 000000000000000 नाम दिया है। नवकार गिनने की
प्राधान्यता से व्यवहार में लोकभाषा में माला के लिए पर्यायवायी अपर नाम के रूप में नवकारवाली प्रसिद्ध हो
चुका है । हाँ, कोई गलत भी नहीं है। 8 उचित ही है । इस नवकार महामंत्र में ४२ परमात्मा भगवान के नाम हैं8 १) अरिहंत भगवान, २) दूसरे सिद्ध
भगवान । आराध्य देव के रूप में दोनों
परमात्माओं की आराधना उपासना Gooooooo000०°
गुणों के आधार पर होती है । इसी तरह गुरुओं की आराधना आचार्य-उपाध्याय साधु पद से उनके गुणों के आधार पर होती है । अतः पाँचों परमेष्ठी के गुणों की गणना इस प्रकार की है
- २. सिद्ध ८ गुण - १. अरिहंत १२ गुण - ३. आचार्य ३६ गुण
कुल १०८ गुण ४. उपाध्याय २५ गुण
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उपाध्याय २५ 00000000000
आचार्य ३६ 00000000000
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- ५. साधु २७ गुण आध्यात्मिक विकास यात्रा
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