________________
किमी भी गुरु का नाम भी नवकार महामंत्र में नहीं है । आचार्य-उपाध्याय एवं साधु इन ताना गुरु के पदों का आधार उनके गुणों पर है । आचार्य पद ३६ गुणों के धारक आचार्यों का वाचक है । उपाध्याय पद २५ गुणों के धारक उपाध्यायजी महाराजों का वाचक है। साधु पद २७ गुणों के धारक समस्त साधुओं के लिए वाचक है । यहाँ गुणों को आधारस्तंभ बना दिया है । इसलिए किसी भी व्यक्ति विशेष का प्रश्न–महत्त्व नहीं रहता है। व्यक्ति तीनों काल में सदा नहीं रह सकती है। परन्तु गुणों का अस्तित्व तीनों काल में सदा ही एक जैसा रहता है। ___गुण शाश्वत हैं । सदा नित्य रहनेवाले हैं । जो जो शाश्वत-नित्य होता है उसका तीनों काल में अस्तित्व रहता ही है । अतः त्रैकालिक सत्ता को शाश्वत-नित्य कहा गया है । गुणों की त्रैकालिक सत्ता के आधार पर उन उन गुणों के धारक गुणी महापुरुषों के स्वरूप भी एक जैसे समान रहेंगे। एक सादृश्यता का आधार गुणों पर रहेगा। फिर सभी एक जैसे लगेंगे । अतः व्यक्ति में भेद न आकर समानता-अभेदता बढेगी । इसलिए गुणों का उपकार क्षेत्र बहुत बड़ा है । तथा प्रकार के एक जैसे गुणों की एक जैसी कक्षा सर्व में रहने के कारण वे गुणधारक व्यक्ति भी एक जैसे ही दिखाई देंगे। लगेंगे। फिर उनको मानने आदि की प्रक्रिया में व्यवहार में, उपासना में, आराधना में कहीं भी भेदभाव नहीं आएगा । इसी गणों का उपकार है कि इस चोबीसों तीर्थकर भगवंतों को एक समान भाव से बिना किसी भेदभाव से समान रूप से पूजते हैं, आराधते हैं, मानते हैं ।
इसी तरह गुरुओं को भी गुणों के आधार पर मानें-आराधे तो राग द्वेष सर्वथा लुप्त ही हो जाय। लेकिन समाज में आज गुरुओं के नाम पर राग-द्वेष जो चल रहे हैं वह मेरे-तेरे मानने के कारण है । नाम के कारण है। सांप्रदायिक ममत्व के कारण है। व्यक्तिगत ममत्त्व-ममकार भाव के कारण है । वैसा व्यवहार लोगों ने बना दिया है। इसलिए राग-द्वेष बढ रहा है । यह वीतराग धर्म पर कलंक लगानेवाला है । अतः सर्वथा हेय है । त्याज्य है।
जैन शासन में व्यवस्था इतनी सुन्दर है कि प्रतिवर्ष अलग-अलग साध साध्वीजी महाराज चातुर्मास पधारे, नाम–व्यक्ति से वे कोई भी हो, कैसे भी हो, लेकिन आचार विचार की समानता, गुणों की समानता, आदि के कारण वे समान रूप से उपादेय होते हैं । आराध्य होते हैं। गुणात्मक स्वरूप ही श्रेष्ठ होता है। प्रतिवर्ष अलग-अलग साधु-साध्वीजी महाराज आएं, चार महिने रहें, चातुर्मास करें और चले जाए। फिर अन्यत्र पधारें, दसरे-गाँव शहरों में चातुर्मास करें । वहाँ से भी फिर आगे बढें, इस तरह भारत भर में
गुणात्मक विकास
३१३