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________________ हुए भी ऐसा समान गुण रखा गया है जो सभी तीर्थंकर परमात्मा में समान रूप से अवश्य मिलता हो । बिना इस गुण के कोई भगवान बन ही नहीं सकता है। भगवान - ईश्वर बनने के लिए सर्वप्रथम अरिहंतपने के गुण की प्राथमिक आवश्यकता है। इसके बिना जगत् में कोई भी भगवान बन ही नहीं सकता है । अतः“नमो अरिहंताणं” गुणात्मक पद से सभी तीर्थंकरों को- तीनों काल के तीर्थंकर भगवंतों को नमस्कार किया गया है। अतः यह नमस्कार महामन्त्र त्रैकालिक - तीनों काल व्यापक बन गया है। क्योंकि जब जब भी कोई भी भगवान बनेगा तब अरिहंत अवश्य ही बनेगा । जो जो अरिहंत बनेंगे वे ही भगवान कहलाएंगे। अरिहंतपने के अभाव में यदि कोई भी भगवान बनेगा तो वह सच्चा यथार्थ वास्तविक सही अर्थ में परमात्मा नहीं बनेगा । वह कृत्रिम भगवान बनने की कोशिश करेगा। इससे संसार में सेंकडों दूषण और फैलेंगे इसका प्रत्यक्ष अनुभव आज मानव जाति कर ही रही है । आज कल जो भगवान हुए हैं, और हो रहे हैं, उनमें अरिहंतता का अंश मात्र भी गुण नहीं है और वे भगवान बन रहे हैं। बस, चमत्कारों के नाम पर भोली-भाली मुग्ध प्रजा को लुभाकर, फसाकर, अपने अनुयायी बनाकर उन्हें भी गलत रास्ता दिखाना और सच्चे मार्ग से भ्रष्ट करने का काम आज कल के कई भगवान कर रहे हैं यह बडी ही शरम की बात है । मनुष्यों की अज्ञानता का फायदा उठाकर दुरुपयोग करके उनका भी नाश करना और अपना खुद का भी नाश करना होता है | अतः वर्तमान मानव समाज को नमस्कार महामंत्र की गुणात्मक - गुणाधारितता को समझकर गुणों से परिपूर्ण परमात्मा को समझना चाहिए । यथार्थ स्वरूप समझकर सम्यग् श्रद्धा बढानी चाहिए। ऐसे ही परमात्मा अरिहंत के शुद्ध अनुयायी बनना चाहिए और उन्हीं के मार्ग पर चलकर आत्मकल्याण साधना चाहिए । “नमो सिद्धाणं” पद भी सर्वगुणपरिपूर्णता का द्योतक पद है । जगत के सर्व गुण पूर्ण कक्षा के अन्दर सिद्धों में समाविष्ट हैं । सिद्ध किसी व्यक्ति-विशेष का नाम नहीं है । यह तो आत्मा की सर्वथा कर्मों की निरावरणता की सूचक अवस्था विशेष का वाची पद है । इसलिए " नमो सिद्धाणं” मन्त्रोच्चार करते ही आज दिन तक संसार से जितने भी मुक्त हुए हैं उन सभी अनन्त मुक्तात्माओं को एक साथ नमस्कार होता है । सर्वथा सर्वकर्ममुक्त, संसार के बंधन से मुक्त, संसार के जन्म-मरण के चक्र से मुक्त, पुनः संसार में न आनेवाले ऐसे अनन्तकाल में हुए अनन्त सिद्ध भगवंतों को नमस्कार किया गया है । गुणात्मक पदों की व्यवस्था अरिहंत और सिद्ध के बारे में नवकार महामंत्र में है, गुरु के वाची अन्य तीनों पदों में भी ठीक वैसी ही गुणात्मक पदों की व्यवस्था है । अतः आध्यात्मिक विकास यात्रा ३१२
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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