________________
है । यदि गुण का विचार न करें तो भेद कैसे करेंगे? अतः दोनों के असंख्य प्रदेश होते हुए भी गति–एवं स्थिति सहायकता के गुण के आधार पर ही दोनों भिन्न भिन्न स्वतंत्र द्रव्य सिद्ध होते हैं । इसी तरह धर्मास्तिकाय- अधर्मास्तिकाय दोनों की तुलना द्रव्य की दृष्टि से आत्मा के साथ की जाय तो असंख्य प्रदेश, अखंड प्रदेश, अनादि-अनन्त नित्यता, प्रदेश समूहात्मकता, अरूपीपना, अमूर्तपना आदि अनेक रूप में सात्म्यता, सादृश्यता होते हुए भी ज्ञानादि गुणों की विशेषता से चेतनात्मा इनसे भिन्न सिद्ध होता है और गति स्थिति की सहायता के गुण से धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय चेतनात्मा से भिन्न सिद्ध होते हैं। अतः द्रव्य स्वरूप से सादृश्यता होते हुए भी गुणों के कारण भिन्नता स्वतन्त्रता सिद्ध होती है । अतः गुण भेदक है।
जड पुद्गल के गुण वर्णादि जड में ही रहते हैं । अतः वर्ण-गंध-रस-स्पर्शादि गुण पुद्गल की पहचान करानेवाले स्वतंत्र गुण हैं । इसी ज्ञान-दर्शनादि गुण चेतनात्मा द्रव्य की पहचान करानेवाले विशेष गुण है । गुण ही न हो तो जगत में किसी का किसी से भेद ही सिद्ध नहीं हो सकता है । परन्तु गुण ही न हो तो द्रव्य का ही अस्तित्व नहीं रहेगा। क्योंकि जगत् में एक भी द्रव्य बिना गुण का नहीं है । होता भी नहीं है । संभव भी नहीं है। गुणात्मक व्यवहार बनाने से फायदा
हमारे समाज में वर्तमान काल में जो व्यवहार चल रहा है वह प्रायः द्रव्याधारित हो चुका है । पैसों के आधार पर सामाजिक व्यवहार बन चुका है । बना दिया गया है । परन्तु गुणाधारित न रहने से कई विषमताएं बुराइयाँ घुस गई हैं । मात्र पैसा ही मनुष्य की पहचान जो आज बन गई है, वह बहुत ही नुकसानकारक है। बुराइयाँ लानेवाली है । अतः हमें चाहिए कि... गुणाधारित सर्वसामान्य व्यवहार समाज में मानव जाति में बनाएं तो काफी उत्तम कक्षा की व्यवस्था समाज में हो सकती है।
इसके लिए इमें “जीवनं सूत्र" बनाना होगा कि... “हम कोन है ?" यह न सोचकर "हम कैसे हैं?" यह सोचें । इसी बात का आग्रह सभी करें । हम क्या हैं? हम कौन हैं ? मैं क्या हूँ? ऐसा सोचने पर अहंकार का दूषण बढ़ता है । मेरे पास क्या क्या है, कितनी संपत्ति आदि है यह दिखावा करने से समाज में स्पर्धा बढती है । सामने ईर्ष्या-द्वेष की वृद्धि होती है। अतः मैं कैसा हूँ?" प्रत्येक व्यक्ति ऐसी विचारधारा बनाकर चले तो ही समाज में काफी अच्छी सुधारणा आ सकती है । मैं कैसा हूँ ? इसमें गुण-दोष का स्वरूप सामने आता है । दोष अच्छे नहीं हैं । दोषों की प्रसिद्धि होने पर मेरी इज्जत जाएगी । अतः
३१०
आध्यात्मिक विकास यात्रा