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इन नौं प्रकार के पुण्योपार्जन में २ विभाग किये जा सकते हैं- १) एक तो... पहले पाँच का द्रव्य विभाग, २) और दूसरे शेष ४ का भाव विभाग। प्रथम पाँच में तो कुछ देना है। बाह्य साधन-सामग्री-वस्तु आदि देना है। वहाँ द्रव्य की (वस्तु की) प्राधान्यता है । अतः द्रव्य पुण्य के प्रकार में समावेश हो सकता है । दूसरे ४ में वस्तु नहीं है। भाव की प्राधान्यता ज्यादा है । मन से किसी के प्रति शुभ भाव अच्छे विचार, वचन योग से शुभ प्रेमपूर्ण-आदरार्थी सभ्य भाषा, और काया से शुभ-प्रशस्त प्रवृत्ति । सेवादि-परोपकार की प्रशस्त प्रवृत्ति और देव-गुरु-धर्म के प्रति विनम्रता पूर्वक की नमस्कारादि की प्रवृत्ति भी पुण्य उपार्जन कराती है। इनमें वस्तु या द्रव्य की प्राधान्यता नहीं है । अतः एक नया पैसा भी न होने पर भी व्यक्ति शेष ४ प्रकार के भावों निमित्तों से शुभ पुण्योपार्जन कर सकता है । नमस्कार की क्रिया का द्योतक मुख्य गुण विनय-धर्म है । विनय-विवेक की जोडी है । देव-गुरु-धर्म के प्रति विनयपूर्वक विनम्रता की प्रवृत्ति पुण्यकारक है।
उपरोक्त पुण्यों के उपार्जक साधनों द्वारा पुण्योपार्जन कर चुकने के पश्चात उपार्जित शुभ पुण्य कर्म के उदय काल में... उस जीव को वैसा वापिस प्राप्त भी होता है । तथाप्रकार की प्राप्ति से उस जीव को जन्मान्तर में भवान्तर में... विकास योग्य उत्थान के अनुरूप देव-गुरु-धर्म के अनुकूल साधन सामग्रियों की प्राप्ति होती है और जीव को आगे बढ़ने में काफी ज्यादा सहायता मिलती है। कर्म के क्षय एवं क्षयोपशम से विकास
जिस तरह कर्म के नए पुण्य उपार्जन के उदय काल में वैसे सुंदर निमित्त प्राप्त होते हैं और जीव का विकास होता है वैसे ही पुण्य से भी श्रेष्ठ कक्षा का उपाय है कर्म के क्षय का या क्षयोपशम का । कर्म जो आत्मा पर अनादि-अनन्त काल से चिपके हुए हैं, उस कर्म ने आत्मा के मूल गुणों का घात कर दिया है । आवरण बनकर कर्म ने आत्मा के गुणों को दबा दिया है । अतः अब आत्मा का सारा गुणवैभव कर्मों ने दबा दिया है । और ऊपर कर्म ही राज कर रहे हैं। जैसे एक शत्रु राजा-सेना सह आक्रमण करके युद्धादि में सामनेवाले राजा को परास्त कर उसे दबोच डालता है, अपना गुलाम बनाकर रख लेता है
और उसी के सामने उसकी इच्छा के विपरीत आचरण-व्यवहार-कार्य आदि करना... जिससे उस राजा की आत्मा को बडा भारी दुःख होता है। ऐसी गुलामी की परवशता–पराधीनता की परिस्थिति में फसा हुआ क्या कर सकता है? ठीक उसी तरह
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आध्यात्मिक विकास यात्रा