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में भी अनन्तकाल तक चलती ही रहेगी । इसी से संसार की स्थिति अनादि अनन्त कही जाती है । अतः पुद्गल - परमाणु में विकास की कोई प्रक्रिया नहीं है ।
क्या काल में विकास संभव है ?
यद्यपि काल कोई स्वतंत्र अस्तिकायरूप द्रव्य ही नहीं है । यह व्यवस्थाकारक द्रव्य है। नए से पुराना, और पुराने से नया आदि की अवस्था का परिवर्तन यह काल सापेक्षिक द्रव्य है । काल में सेकंड, मिनिट, घंटे, दिन, रात, सप्ताह, पक्ष, महीने, वर्ष, युग, शताब्दी, सहस्राब्दी, पूर्वांग, पूर्व, पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, कालचक्र, आदि काल की विभिन्न अनेक पर्याएं हैं। इससे काल की ये तो गिनती के आधार की संज्ञाएं दी गई हैं । प्रति समय पर आधारित यह काल व्यवस्था है । समूहात्मक अवस्था की गिनति को तथाप्रकार की संज्ञा दी गई है। इससे काल का आगे विकास कैसे समझा जाय ? सतत अखण्ड रूप से निरंतर चलते रहनेवाले काल में अनन्त काल बीतता ही जाता है । घडी का कांटा उसकी अन्दर के चक्रों को दी गई चावी के आधार पर सतत गति करता ही रहता है । डायल के ऊपर दिये गए अंकों से कितने बजे की संख्या का ज्ञान होता है । यदि डायल ही न होता तो मात्र कांटे की घूमने की स्थिति रहती । पता नहीं भी चलता लेकिन फिर भी काल का निरंतर सतत चलते रहना ख्याल में जरूर आता है । इसी घडी की तरह १२ आराओं का कालचक्र भी बदलता ही रहता है। आरे बदलते ही रहते हैं । परिवर्तनशीलता काल में सदा ही रहती है । यह स्थिर तत्त्व नहीं है। संतत गतिशील—परिवर्तनशील है । अतः एक क्षण भी काल रुकता ही नहीं हैं। पहले के बाद दूसरा- तीसरे के बाद चौथा ... इस तरह आरे बदलते ही जाएंगे । और पुनः वे ही आगे वापिस आएंगे । क्योंकि ६ ही आरे हैं। अच्छे भी हैं और उनमें खराब भी हैं, परन्तु क्रम से वापिस आएंगे ही आएंगे। अतः काल में भी आगे विकास करने की योग्यता नहीं है
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भूत भौतिक में विकास
पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु आदि की निर्जीवावस्था में क्या विकास संभव है ? पृथ्वी का क्या विकास होगा ? जी नहीं। जडावस्था में पडी है । वनस्पति का तना- - जो काष्ठ के रूप में है वह भी अब निर्जीवावस्था में पड़ा है। हजारों साल तक पड़ा रह सकता है । लेकिन उसमें विकास क्या होगा ? इसी तरह पाषाण भी हजारों लाखों वर्षों तक पड़ा रहे तो भी उसमें विकास क्या हो सकता है ? कुछ भी नहीं । अब काष्ठ, पत्थरादि जड अवस्था
आध्यात्मिक विकास यात्रा
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