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पुद्गल - परमाणु में विकास- विनाश
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समस्त ब्रह्माण्ड में पुद्गलास्तिकाय भी एक द्रव्य है । (इसका भी वर्णन पहले काफी किया है) यह जड द्रव्य है । अवस्था विशेष से स्कंध, देश, प्रदेश और परमाणु स्वरूप से चार अवस्था में गिना जाता है । परमाणु स्वरूप से नित्य है । सदाकालीन अस्तित्वधारक परमाणु अपनी सत्ता की दृष्टि से नित्य है । त्रैकालिक सत्ता है । यद्यपि परमाणुओं का संघात -विघात होता ही रहता है, फिर भी अस्तित्व का सर्वथा नाश नहीं होता है । अभाव स्वरूप परिस्थिति कभी भी नहीं आती है । परमाणुओं के संघात - विघात के कारण पर्याय बदलती रहती है । बदलेगी कब ? जब पूर्व पर्याय नष्ट होगी और नई पर्याय उत्पन्न होगी तभी पर्याय बदलेगी । उत्पत्ति-नाश पर्यायों का होता है । इसे ही उत्पाद - व्यय कहते हैं । परमाणु में वर्ण गंध, रस, स्पर्शादि गुण होते हैं । इनमें भी परिवर्तन होता है । गंध-रस-स्पर्शादि गुण होते हैं। इनमें भी परिवर्तन होता है। रस स्पर्शादि बदलते रहते हैं । आम प्रारंभ में कच्चा हरा खट्टा रहता है। धीरे-धीरे हरापन कम होकर बदलता है और पीलापन आता है, फिर केशरी - लालपना आता है । इसी तरह खट्टेपन से मीठेपन में भी परिवर्तन होता है । यहाँ परमाणुओं का परिवर्तन होता है। लेकिन परमाणुओं का सर्वथा नाश नहीं होता है। हीरा भी जलने के बाद कार्बन की राख में परिवर्तित हो जाता है । राख के बाद का नाश क्या ? फिर परमाणुओं का रूपान्तर होता रहता है । यही स्थिति अनन्त काल से आज दिन तक चली आ रही है । अनन्तानन्त परमाणु हैं। किसी एक का भी सर्वथा अभाव - नाश नहीं होता है । मात्र परिवर्तन होता है ।
क्या इस प्रकार के परिवर्तन को विकास कहें? उन्नति कहें ? जी नहीं । संभव नहीं
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है । विकास उसे कहते हैं जिसमें आगे बढ़ते-बढ़ते आगे की अवस्था धारण करते जाना विकास है । पुनः पूर्वावस्था धारण करना विनाश है। परमाणु में वैसा नहीं होता है । आगे-आगे की कौनसी अवस्था सतत धारण करते रहना ? परमाणु संघात से स्कंध की अवस्था धारण कर सकता है । बस, इसके बाद उसके लिए आगे बढने का कोई विकल्प ही नहीं है । लेकिन स्कंध का पुनः विघात होते ही देश में ... I . फिर प्रदेश - परमाणुओं के रूप में बिखराव हो जाता है । फिर वापिस संघात से परमाणुओं में संचय होकर एक स्कंध बनता है । फिर विघात होकर परमाणु की अवस्था में रूपान्तरण हो जाता है । इस तरह पुद्गल मात्र रूपान्तर पर्यायान्तरण होता ही रहता है । और परमाणु रूप में नित्यता बनी ही रहती है। बस यही परिवर्तन की प्रक्रिया है । अनन्तकाल से चली आ रही है । और भविष्य
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गुणात्मक विका
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