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विनाश
विकास या विनाश-आखिर किसका?
संसार में द्रव्यभूत पदार्थ सिर्फ २ ही A हैं। एक । चेतन-जीवात्मा और । दूसरा-अजीव जड पदार्थ । बस इन दो के PP) सिवाय जगत में तीसरा कोई द्रव्य ही नहीं है । नौं तत्त्वों में जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष इन नौं की गणना होती है । इनको तत्त्व कहा है । नहीं कि द्रव्य। जीव-अजीव ये प्रथम दो द्रव्य हैं । और शेष सभी इन दोनों के संयोग-वियोग की अवस्था मात्र है। लेकिन द्रव्य रूप से आश्रवादि का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। - अजीव द्रव्य १) धर्मास्तिकाय, २) अधर्मास्तिकाय, ३) आकाशास्तिकाय, ४) पुद्गलास्तिकाय और ५) काल है। चार अस्तिकाय हैं और काल स्वतंत्र है। (इन सबका वर्णन आगे प्रथम अध्याय में विशेष रूप से किया है । वहाँ से वापिस पढकर स्मृति • ताजी कर लेनी चाहिए।) क्या इन धर्मास्तिकाय आदि पदार्थों में कभी किसी भी प्रकार की विकास की प्रक्रिया हुई है ? किसी भी काल में विकास हुआ है ? किस प्रकार का कैसा विकास ? उत्तरोत्तर आगे की अवस्था हासिल करने रूप विकास कभी अजीव पदार्थ साध सका है? धर्मास्तिकाय जो गति सहायक द्रव्य है । असंख्य प्रदेशी अखंड १४ राजलोक-व्यापी द्रव्य है। इसमें कभी भी
विकास
गुणात्मक विकास
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