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________________ अक्कीपेठ–बेंगलोर के चातुर्मास में १७ रविवारों तक प्रवचन के माध्यम से ब्लेक बोर्ड पर चित्र पद्धति से सरलतम सचित्र करके श्रोताओं को समझाता रहा । लेकिन सीमित समय में कितना संभव था? विषय अगाध था । अतः लिखना प्रारंभ किया । कलकत्तावाले श्रीमान शा. भंवरलालजी बैद ८५ वर्ष के बुजुर्ग वयोवृद्ध सुश्रावक हैं, अच्छे अभ्यासू भी हैं। उनकी उत्कट भावना थी १४ गुणस्थान के विषय पर पुस्तक लिखाने की । योगानुयोग वे प्रेरक निमित्त कारण बनें । इनकी प्रेरणा ने मुझे लिखने के लिए ज्यादा प्रेरित किया। मैं लिखता ही रहा । कुछ चित्रों को साथ जोडता गया जिससे पाठकों को समझने में और सरलता-सुविधा रहे। संघ के कार्यकर्ताओं ने प्रेस की व्यवस्था की। श्रीमान तेजराजजी, यशवन्तजी, सुभाषजी आदि ने विशेष सेवा की। श्रीमान गौतमजी ने कंपोज किया मुनि हेमन्तविजय ने प्रूफ संशोधन किया। श्री संघ के ज्ञानखाते के सहयोग, और संघ के अनेक दान-दाताओं के उदार आर्थिक सहयोग एवं श्रीमान भंवरलालजी बैद परिवार के तथा श्री महावीर विद्यार्थी कल्याण केन्द्र के उदार सहयोग से पुस्तक निर्माण हो सकी। सचमुच सम्यग् ज्ञान की सेवा में सभी सहयोगी धन्यवाद के पात्र हैं। हिन्दी भाषा में विशेष रूप से लिखने का मुख्य हेतु ही यह रहा कि हिन्दी भाषी लोगों की मांग संतोषी जा सके। उन्हें भी अच्छे-ऊँचे साहित्य से वंचित न रहना पडे । और हिन्दी भाषी लोग चारों तरफ विशेष ज्ञान उपार्जित कर सकें । अतः विशेषरूप से हिन्दी भाषा में यह ग्रन्थ तैयार किया है । १४ गुणस्थान के मूल विषय को सरल सचित्र बनाकर आनुषंगिक अवान्तर विषयों को साथ जोडकर विषय को परिपुष्ट करने की कोशिष की है । आशा है जिज्ञासू वर्ग इस ग्रन्थ से गुणस्थान के विषय को समझ सकेगा। पाठक वर्ग पढकर गुणस्थानों के सोपानों पर आरूढ होने जाय, उत्तरोत्तर आगे बढते जाय और परंपराए मुक्त होते जाय ऐसी शुभ मनोकामना रखता हूँ। २४ जनवरी, १९९६ श्री संभवनाथ जैन मंदिर बिजापूर, राजस्थान . -पंन्यास अरुणविजय महाराज
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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