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किया है । नहीं, कभी नहीं । अभाव अपेक्षा भेद से सांयोगिक हो सकता है । उदाहरणार्थ किसी ने नीचे से ही पूछा कि- अरुण है ? ऊपर घर में से पत्नी ने जवाब दिया- नहीं है । अतः इस जवाब को पत्नी ने घर की अपेक्षा से दिया है । पति के सर्वथा अभाव-निषेध को सूचित नहीं किया है। पति का अस्तित्व तो है ही... मात्र घर में पति का संयोग नहीं है । संयोग का अभाव ही वियोगदर्शक है । पति वर्तमानकाल में घर में नहीं है। दिल्ली गए हुए हैं । यहाँ कालिक अपेक्षा इस संक्षिप्त जवाब के साथ में जुडी हुई है । जो दिल्ली गया हुआ है तो ३-४ दिन में आ जाएगा। जिससे पुनः घर का संयोग हो जाएगा। जिस काल में जो निषेध किया गया था वह उसी वर्तमानकाल की अपेक्षा से था । काल बदल जाने पर निषेधात्मक जवाब भी बदल जाएगा।
इसी तरह एक रोगी के अस्पताल में मृत्युशय्या पर पडे रहने पर “अभी जीव है" ऐसा व्यवहार होता है। यहाँ अभी शब्द कालिक अपेक्षा का द्योतक है। और जीव का अस्तित्व उस वर्तमान काल में है । लेकिन थोडी देर बाद जीव के चले जाने पर... काल बदल गयां । काल के बदल जाने पर अपेक्षा बदल गई । अब जवाब मिला कि “अब जीव नहीं है" । इन शब्दों में अब शब्द कालवाची है । और नहीं शब्द अभावसूचक है। और जीव शब्द द्रव्य का द्योतक है । अभाव जरूर है परन्तु यहाँ सांयोगिक अभाव है। जिस जीव द्रव्य का शरीर के साथ संयोग था वह अब नहीं है । स्थानान्तर हो चुका है। इसी के कारण...जीव इस शरीर को छोडकर अन्यत्र चला गया है । अतः संयोग का भी अस्तित्व है लेकिन एक शरीर का संयोग काल के कारण छूट गया और दूसरे शरीर से संयोग जुड गया है।
जब संयोग जुडा है तो निश्चित ही संयोगकारक-संयोग करनेवाला कोई तो था तभी तो संयोग हुआ। अन्यथा संभव ही नहीं था । अस्तित्व दोनों तरफ है ही। पहले प्रथम शरीर में संयोग था अब दूसरे शरीर में संयोग हुआ है। संयोग है अतः संयोगी द्रव्य का अस्तित्व है ही । त्रैकालिक सत्ता होने के कारण अस्तित्व सदा ही रहता है । मात्र संयोग के काल एवं क्षेत्र में परिवर्तन होता रहता है। और इसी संयोग-वियोग को जन्म-मरण कहते हैं । जीवात्मा का शरीर के साथ संयोग होने को जन्म और इसी शरीर से वियोग होने को मरण कहते हैं। अतः जन्म-मरण के धारण करने की क्रिया से भी आत्मा द्रव्य का अस्तित्व प्रकट होता है । क्योंकि समस्त संसार में जन्म-मरण जीवात्मा ही धारण करती है । जीवात्मा के सिवाय के अतिरिक्त अन्य कोई जन्म-मरण धारण करनेवाला ही नहीं है । अजीव जड–पुद्गल पदार्थ का जन्म-मरण धारण करने का कार्य
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आध्यात्मिक विकास यात्रा