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अतः जिसका अस्तित्व होता है उसीका निषेध अभाव होता है । अतः अभाव सी भाव को सिद्ध करता है। अजीव - निर्जीव शब्द भी जीव के अभाव के द्योतक हैं अजीव में जीव का निषेध है । निर्जीव में भी जीव का ही निषेध है । अतः यह निषेध - अभाव भी प्रथम जीव का अस्तित्व सिद्ध करता है फिर निषेध । इसलिए इस एक शब्द से दो का अस्तित्व सिद्ध होता है । एक तो जीव का प्रथम । और दूसरा जो जीव नहीं है ऐसा पदार्थ अजीव । जिसमें जीवगत गुण नहीं है ऐसा “अजीव" - निर्जीव पदार्थ ।
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क्या आप संसार में कोई ऐसा नाम बता सकते हैं जिसकी वाचक कोई वस्तु ही न हो या क्या आप कोई ऐसी वस्तु बता सकते हो जिसका वाचक कोई नाम ही न हो ? सोचिए ... बुद्धि के बल पर विचार करिए। आपको ऐसी कोई वस्तु ही नहीं मिलेगी जिसका सर्वथा नाम ही न हो और आपको कोई ऐसा नाम ही नहीं मिलेगा जिसकी वाचक — द्योतक वस्तु ही न हो । अतः यह नियम बनता है कि... नाम है तो वस्तु अवश्य है और वस्तु है तो उसका वाचक नाम भी अवश्य ही है । उदाहरण के लिए आत्मा जीव - चेतनादि ये नाम हैं । तो किसके नाम है ? इन नामों वाली यदि कोई वस्तु ही नहीं होती तो .... ये नाम किसके हैं ? क्या हम किसी भी वस्तु के ये नाम रख सकते हैं ? इन आप किसी अन्य वस्तु का व्यवहार कर सकते हैं ? जीव- आत्मा के सिवाय भिन्न कोई ऐसी वस्तु ही नहीं है जिनका “आत्मा” या “ चेतन" नामों से व्यवहार कर सकते हो ।
जी नहीं। संभव ही नहीं है। शायद आप कहेंगे कि हम किसी भी वस्तु का आत्मा या चेतन या जीव नाम रख देंगे। किसी मकान, किसी खिलौने, किसी वाहनादि का नाम आप रख सकेंगे । बात ठीक है । लेकिन... क्या उनमें उस नाम के अनुरूप गुण हैं ? क्या वह मकान, खिलौना आदि वस्तु आत्मा के गुणों से व्याप्त होगी? एक भी गुण उनमें नहीं हो फिर भी क्या वे नाम रख सकते हैं ? जी नहीं। कभी भी नहीं । लेकिन व्यवहार से लोक रख भी देते हैं तो वे नाम सार्थक नहीं निरर्थक हैं। सार्थक नाम तो गुणनिष्पन्न नाम ही होते हैं । नाम द्रव्य के होते हैं । और द्रव्य गुणों से परिपूर्ण होता है । गुणों का खजाना जिसमें भरा हुआ रहता है उसे ही द्रव्य कहते हैं । व्याख्या ही ऐसी की है“गुण- पर्यायवद् द्रव्यम्” गुण और पर्यायवाला जो होता है वही द्रव्य होता है । उसे ही द्रव्य कहते हैं । जगत् में ऐसा एक भी द्रव्य नहीं है जिसमें गुण न हो और ऐसा कोई गुण नहीं है जो द्रव्य के बिना स्वतंत्र रहता हो । संभव ही नहीं है । गुण जब भी रहेंगे तब द्रव्य के साथ ही रहेंगे । और द्रव्य जब भी रहेंगे तब गुण युक्त ही रहेंगे। बिना द्रव्य के गुणों
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आध्यात्मिक विकास यात्रा
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