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से (वीर्य से वापिस बन्दर ही बनेगा । आम से संतरा नहीं बनेगा । और संतरे से आम नहीं बनेगा । इसी तरह पशु से मनुष्य नहीं बनेगा और मनुष्य से पशु नहीं बनेगा । एक ही भव में शरीर परिवर्तन नहीं होता है । मृत्यु के पश्चात् ही जीवात्मा दूसरी गति में जाकर दूसरा शरीर बदल सकती है । अतः बन्दर से विकसित होकर मानव बना है ऐसी डार्विन की विचारधारा सर्वथा असत्यमूलक है ।
अनन्त भवों की परंपरा में जो जो जन्म हो रहे हैं उनमें से किस जीव के शरीर को किसने बनाया है ? क्या विज्ञान के द्वारा बनाना संभव है ? जी नहीं । विज्ञान एक भी फल-तरकारी का बीज निर्माण नहीं कर सका है। उस बीज में जो जीव है वह स्वकर्मानुसार वैसा शरीर धारण करेगा। एक नीबू के बीज की परंपरा कितने काल से हैं? असंख्य काल से हैं । वे जीव उस नीबू के वृक्ष में आते हैं, उत्पन्न होते हैं, वे अपनी वंशपरंपरा चलाने हेतु फल में बीजोत्पत्ति करते हैं और बीजों की परंपरा चलती रहती है। बीज से पुनः वृक्ष–फल, तथा वृक्ष से पुनः बीज इस तरह यह क्रम चलता ही रहता है । चलते चलते अनन्त काल बीत गया। आज भी नींबू आदि लाखों वनस्पतियों का अस्तित्व है और भविष्य में भी अनन्तकाल तक रहेगा । अतः प्रत्येक जीवों की प्रत्येक देह पर्यायें परंपरा से त्रैकालिक शाश्वत हैं । तीनों काल में सदा ही प्रत्येक जीवों का अस्तित्व था और रहेगा । अतः बन्दरों का मनुष्यों का सबका अस्तित्व सदा ही रहेगा। ऐसा नहीं होगा कि बन्दर से मनुष्य बन जाएंगे और बन्दर जाति सर्वथा लुप्त हो जाएगी। ऐसा नहीं होगा। संसार के रंग मंच पर सभी जीवों की सभी गति-जातियाँ अनादि-अनन्त रहतीं है । हाँ, क्रूर मानवी भयंकर व्यापक विनाश करके किसी जाति को नामशेष कर दे यह संभव हो सकता है।
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अतः जीवों का गमनागमन, जन्मान्तर, भवान्तर गति-जाति का यथार्थ सत्य स्वरूप सर्वज्ञों के सिद्धान्त से समझकर चरम सम्यग् ज्ञान प्राप्त करके स्व-पर कल्याण साधना चाहिए...
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॥ इति शम् ॥
आध्यात्मिक विकास यात्रा