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________________ है। स्कूलों कालेजों में इसकी पढाई जोरों से चल रही है । आश्चर्य तो यह है कि... अपने आपको बुद्धिशाली माननेवाली युवापीढि के युवक गण भी वहाँ बिना कुछ प्रश्न पूछे, बिना किसी तर्क किये.. बाबा वाक्यं की तरह पढकर आ जाते हैं । न तो सच्चे झूठे का विचार है और न ही विद्या के साथ या अपने साथ कोई न्याय है? फिर भी लाखों रुपए मिथ्या-गलत-विपरीत ज्ञान के पीछे खर्चे जा रहे हैं । और सम्यग्-सच्चे-सही-ज्ञान के पीछे सर्वथा उपेक्षा का सेवन किया जा रहा है । यह सम्यग् ज्ञान के साथ कितना घोर अन्याय है? और इस अन्याय का फल समाज-लोक आज भी भुगतता ही है । अतः डर्विन के विकासवाद की विचारधारा को किसी भी स्तर पर स्वीकारा नहीं जा सकता। सर्वथा अग्राह्य-अनुचित है। जन्मान्तर सादृश्यवाद जगत् में ऐसी भी विचारधारा का एक मत .... पक्ष है जो ऐसा मानता है किआज इस जन्म में जो जीव जैसा है, जिस देह में है वह सदा ही उसी योनि में जन्म ग्रहण करता रहता है और सदा वैसा ही रहता है। गति–जाति का परिवर्तन नहीं होता है। उदाहरणार्थ विचार करने पर ख्याल आएगा कि- आज जो मनुष्य है वह भूतकाल में अनादि से मनुष्य ही था और भविष्य में भी आगे पुनः पुनः मनुष्य ही बनता रहेगा । जन्मान्तर अर्थात् जन्म बदलता नहीं है। गति बदलती नहीं है। जाति बदलती नहीं है। यहाँ पंचेन्द्रिय-चउरिन्द्रिय आदि जातियाँ पाँच हैं। जो जीव जिस जाती में है वह उसी जाति-गति में सदा ही रहता है । देव सदा देव ही रहता है। नारकी सदा नारकी ही रहता है । मनुष्य सदा काल मनुष्य ही रहता है । घोडा, गधा, हाथी, ऊँट बैल, पक्षी आदि सभी प्राणी जो जैसे हैं, वे मरेंगे तो भी मृत्यु के पश्चात् वापिस आज के जैसे ही बनेंगे। परिवर्तन नहीं होगा। अर्थात् ऊँट मरकर हाथी नहीं बनेगा, हाथी मरकर ऊँट नहीं बनेगा। घोडा मरकर मनुष्य नहीं बनेगा। उसी तरह मनुष्य मरकर घोडा नहीं बनेगा । इसे कहते हैं “एक गति–एक जातिवाद” । गति और जाति वे जरूर मानते हैं । मृत्यु जरूर होगी लेकिन गति–जाति-जन्म बदलता नहीं है । वैसी ही समानता सदाकाल रहती है । इस मत को “जन्मान्तर सादृश्य” नाम से भी कहते हैं । जन्म = वर्तमान भव, अन्तर अर्थात् दूसरा जन्म, और सादृश्य अर्थात् ठीक वैसा ही। ऐसी विचारधारा भगवान महावीरस्वामी के पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी... दीक्षा ग्रहण करने के पहले अपने गृहस्थाश्रम में थे तब उनकी थी । वेदों का अभ्यास करते समय उनकी मान्यता ऐसी बन चुकी थी। इससे डार्विन के विकासवाद की समीक्षा २७७
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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