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________________ तो नहीं बचेंगे क्योंकि सबका ही विकास हो जाएगा ? और विकसित रूप ही रहेगा। इतना ही नहीं मनुष्य का भी निरंतर विकास की प्रक्रिया में रूप बदलकर विकसित रूप ही रहेगा । इस तरह सारी पृथ्वी की शकल ही बदल जाएगी। वर्तमान कुछ भी स्वरूप नहीं बचेगा। सब विकसित नया ही स्वरूप हो जाएगा । I लेकिन यह सब काल्पनिक उडान मात्र है । विचार तरंगों की शब्दजाल मात्र है । अगर भविष्य में वर्तमान प्राणी सृष्टि कुछ भी ऐसी नहीं रहेगी जैसी आज है, सबका विकसित श्रेष्ठ स्वरूप ही रहेगा ऐसा यदि मानें तो ... आज दिन तक जो लाखों करोडों वर्ष बीते हैं उनमें ऐसा क्यों नहीं हुआ ? जब आगे भविष्य में हो सकता है तो बीते भूतकाल में क्यों नहीं हुआ? संसार तो अनादि - अनन्त है । लाखों करोडों वर्षों से चलता ही आ रहा है । इतनें काल में जब कुछ भी विकास नहीं हुआ तो भविष्य काल में हो जाएगा ऐसा किस आधार पर माने ? भूतकाल के लाखों-करोडों वर्षों के बाद आज भी बन्दर वैसे के वैसे ही हैं । न तो सभी बन्दर बदले हैं और न ही सभी बन्दरों का नाश हुआ है । न तो सर्वथा बन्दर जाति का लोप हो चुका है और न ही बन्दरों का मनुष्य के रूप में सम्पूर्ण विकास हो चुका है । अतः भविष्य में भी कैसे मानें ? अतः यह निरर्थक बकवास सिद्ध होता है । ऐसा न तो विकास होता है और न ही ऐसे को विकास कहते हैं । ये विचार सामान्य जनता को गुमराह करने जैसे हैं । डार्विन ने भी जब ये विचार रखे थे तब डार्विन को भी जेल की सजा भुगतनी पडी थी । न तो ख्रिस्तियों ने डार्विन के विकासवाद की प्रक्रिया स्वीकार की थी और न ही ... अन्य किसी धर्म ने या दर्शन ने स्वीकार की थी । इतना ही सभ्य समाज डार्विन के इन विचारों से भडक उठेगा कि... डार्विन ने हमारे पूर्वजों को हजारों पीढियों पहले के माता-पिता को ... बन्दर कहा, जिससे आज हम बन्दर की औलाद सिद्ध हुए । क्या बन्दर की औलाद में मनुष्य हो सकता है ? क्या संभव है ? नहीं ... कभी भी नहीं । वर्तमान विज्ञान भी ऐसा नहीं मानता है । एक नर प्राणी के वीर्य को अन्य जाति की मादा प्राणी में रखने से.. किसी अन्य ही प्रकार के विचित्र जीव की उत्पत्ति होगी ? जी नहीं । क्या बन्दर का वीर्य स्त्रीयोनि में आरोपित किया जाय तो खच्चर की तरह बन्दर पुरुष उत्पन्न होगा ? नहीं । यह सब निरर्थक कल्पना जाल है । अतः डार्विन ने हमारे पूर्वजों को बन्दर कहकर... एक मोटी गाली दे दी है। और हमको बन्दर की औलाद सिद्ध कर दिया है यह सबसे बडी मूर्खता है । 1 लेकिन अफसोस और आश्चर्य इस बात का है कि... वर्तमान समाज ऐसी झूठी गलत विद्या को भी लाखों करोडों रुपयों का व्यय करके भी पढ़ता है। युवा पीढि पढती आध्यात्मिक विकास यात्रा २७६
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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