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विकासयोग्य वातावरण कहते हैं ? इसका निर्णय होना भी जरूरी है । फिर ऐसे वातावरण का सर्जन–निर्माण किया जाता है । या प्रकृति के घर में अपने-आप होता ही रहता है? तो फिर जिस वातावरण में बन्दर का विकास हुआ, क्या उस समय हाथी-घोडा-ऊँट आदि सभी प्राणी-पशु-पक्षी सब नहीं थे क्या? कहाँ गए थे? क्या उनका अस्तित्व ही नहीं था? या क्या ये जातियाँ पनपी ही नहीं थी?
यदि पशु-पक्षियों की अन्य जातियों का अस्तित्व ही न मानें तो किसमें से जन्मी? किसने बनाई ? कैसे निर्माण हो सकी ? सेंकडों प्रश्न खडे होंगे? यदि लाखों-करोडों वर्षों पहले हाथी-घोडे आदि प्राणियों का अस्तित्व था ऐसा मानें तो क्या उस समय की गाय-भैंसे दूध नहीं देती थी? ऐसा कह ही नहीं सकते हैं । लाखों वर्षों पहले भी दूध देती थी और आज भी देती ही है। क्या फर्क पडा? किंसे विकास कहें? विकासवाद की निरर्थक बकवास किसी भी स्थिति में कसोटी पर खरी नहीं उतरती है।
क्या विकास निरंतर है?
जैसे हवा निरंतर बहती ही रहती है वैसा विकास भी है ? बिना रुके सतत विकास होता ही रहता है ? बन्दर से.. आते...आते...विकसित मानव बन गए...लेकिन.. . अब भी विकास होता ही रहेगा या बस समाप्ति? या होता ही रहेगा? इन दोनों पक्षों में से क्या मानें? यदि पहले पक्ष में विकास का अन्त मान लेते हैं तो भी उचित नहीं है । क्योंकि विकास योग्य वातावरण जो प्रकृति जन्य है, और उसकी उपलब्धि तो निरंतर है, तब तो फिर उपलब्धि के आधार पर विकास भी सतत निरंतर होता ही रहेगा । बन्दर से मनुष्य बन गया और फिर आगे विकास की निरंतरता में और आगे की स्थिति में कैसा विकसित स्वरूप होगा? क्या आज के मानव की अपेक्षा भविष्य में हजारों वर्षों के बाद के विकसित मानवी स्वरूप की स्थिति कैसी होगी?
निरंतर विकास के आधार पर... भविष्य में फिर मनुष्य का यह रूप भी नहीं रहेगा। क्योंकि जैसे बन्दर से मनुष्य का रूप बन जाने के पश्चात् बन्दर का रूप नहीं रहा, ठीक उसी तरह मनुष्य का भविष्य में विकास हो जाने के पश्चात् मनुष्य का यह रूप-स्वरूप नहीं रहेगा? नहीं बचेगा? कुछ और ही अलग-किसम का रूप होगा? लेकिन ये सब कल्पना की उडाने हैं । यदि विकास की निरंतर-अखण्ड रूप से चलती हुई यात्रा को माने तो... तो... भविष्य में लाखों करोडों वर्षों के बाद... कोई भी बन्दर-गाय-भैंस-ऊँटहाथी-बैल आदि कोई भी पशु-पक्षी इस धरती पर बचेंगे ही नहीं। अरे ! ये पशु पक्षी
डार्विन के विकासवाद की समीक्षा
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