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उसके बच्चे एक सीधे पाइप पर-खम्भे पर, या नारियल के पेड पर तेजी से चढ सकता है, उसके चढने के ढंग को देखकर मानव आश्चर्यचकित रह जाता हैं। क्या इसी तरह मानव भी चढ सकता है ? ५) क्या बन्दर जिस तरह एक दूसरे के शरीर में जूं बिणते हैं और खा जाते हैं वैसे ही क्या मनुष्य कर सकता है ? संभव है ?
बन्दर में चंचलता चपलता और चालाकी आदि जितने प्रमाण में है उन गुणों का क्या हुआ? क्या विकास यात्रा में उन गुणों का भी विकास हुआ या नहीं? जब डार्विन के आधार पर बन्दर से विकास होने के पश्चात् मानवी स्वरूप सामने आया है या ऐसे कहिए कि वर्तमान मानव बन्दर की विकसित आवृत्ति है, ऐसा जो डार्विन का कहना है वह कहाँ तक सही उतरता है ? जी हाँ... सुवर्ण की परीक्षा की तरह यदि डार्विन के विकासवाद की परीक्षा यदि बुद्धिमान मानवी करता है तो निश्चित ही उसे डार्विन की झूठी बोगस बातें सामने स्पष्ट होती जाएंगी। सीधी बात है कि यदि बन्दर से विकसित होकर मानव बना है। उसके विकास के साथ गुणों का और ज्यादा विकास हो कर वे ही गुण और ज्यादा अच्छे स्वरूप में मानवी में दृष्टिगोचर होने चाहिए थे। लेकिन एक भी गुण दिखाई ही नहीं देता है ।
.. इसी तरह मानवी में जो लिखने, पढने, गाने आदि की कला है और जो काफी विकसित स्वरूप में वर्तमान में पाई जाती है क्या उसका अंश मात्र स्वरूप भी बन्दर आदि में पडा है? आज के बन्दरों में या हजारों वर्षों के पहले के बन्दरों में भी इन में से किसी भी कला का अंश भी वहाँ पडा था या नहीं? यदि बन्दर में था ही नहीं तो बन्दर के विकसित रूप–मानव में वे कलाएं कहाँ से आ गई ? अतः यह बात कसोटी पर खरी नहीं उतरती है।
अन्य पशुओं का विकास क्यों नहीं?
डार्विन के विकासवाद की विचार धारा के आधार पर बन्दर से विकास होते होते जैसे मानवी रूप मान लिया गया है । लेकिन जिस समय इस धरती पर बन्दर थे तो क्या उसी समय पृथ्वीतल पर अन्य भी प्राणी-पशु-पक्षी आदि थे कि नहीं? आज सर्वथा निषेध करके ना कैसे कह सकते हैं.. कि नहीं थे। क्योंकि पृथ्वी पर गाय, भैंस, घोडा, हाथी, ऊँट, बैल, बकरी, गधा, खच्चर, शेर, चित्ता, सिंह तथा मोर, हंस, कबूतर, कौए आदि पशु-पक्षी उस समय थे कि नहीं थे? यदि उनकी जातियाँ बन्दरों के समय नहीं थी ऐसा मानें तो बडी भारी आपत्ति आएगी? तो फिर ये सभी पशु-पक्षियाँ कहाँ से आई? शायद
डार्विन के विकासवाद की समीक्षा
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