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________________ चल ही रही है। एक के बाद दूसरा दूसरे से तीसरा इस तरह उत्पन्न होते-होते परंपरा चलती ही जा रही है। इस चलती हुई परंपरा में एक भी बन्दर ... बन्दर की जाति से सर्वथा अलग पडता हुआ या मानव सभ्यता के समीप आता हुआ अभी तक तो दिखाई नहीं दिया। यदि भिन्न-भिन्न देश के भिन्न-भिन्न वातावरण के हजारों बन्दरों का परीक्षण किया जाय तो भी किसी भी बन्दर में मानवी संस्कार या सभ्यता नहीं पाई जाती है। पिता–प्रपिता–पितामह-दादा आदि ४-६ पीढियों से सतत बन्दरों पर निगरानी रखते हुए...शोध के रूप में बन्दर के विषय पर ही केन्द्रित होकर शोधार्थी अपने पत्र-पौत्र को यह विषय आगे बढाने के लिए सतत देते आएं और पुत्र-पौत्र उसके आगे की शोध जारी रखे, और इस तरह ४००-५०० वर्षों तक की निरंतर शोध के पश्चात् यदि देखा जाय तो भी परिणाम शून्य रहेगा। आज हजारों लाखों वर्षों से जो बन्दर की जाति की परंपरा अखण्ड रूप से चली आ रही है उसके बाद भी एक भी मानवी गुण बन्दर में आया नहीं है, तो फिर विकास कैसे बताए? जैसे मनुष्य सोच सकता है, विचार कर सकता है, बोल सकता है, लिख सकता है इत्यादि सैकडों क्रियात्मक विशेषता हैं, वह क्या बन्दर में अंशमात्र भी आई हैं? सब क्रियाएं नहीं ही सही क्या १-२ क्रियाएं भी आई है? जी नहीं। क्या गुण संक्रमण संभव है? क्या बन्दर के गुण मानव में संक्रमित हुए हैं ? क्या मानव के गुण बन्दर में संक्रमित हुए हैं? यदि बन्दर से विकास होकर मानवी स्वरूप बना है, तो बन्दर में पड़ी हुई विशेषता किसी भी १-२ गुणों का संक्रमण मनुष्य में दिखाई देना चाहिए था। जैसे १) बन्दर एक बिल्डिंग पर से दूसरी बिल्डिंग पर ऊपर ही ऊपर से छलांग लगाकर चला जाता है। चाहे वह अन्तर ३० से ४० फीट भी हो तो भी संभव बनता है। और मनुष्य क्या इतनी बड़ी छलांग लगा सकता है? कभी नहीं? २) बन्दर जिस तरह पेड पर, पेड के तने और शाखा पर शीघ्रता से चढ जाता है, क्या मनुष्य वैसे ही चढ पाता है? और तेजी से पेडों पर खेल सकता है ? जो बन्दर के बच्चे भी करते हैं? ३) जन्मते ही बन्दरी का बच्चा माँ के पेट से चिपक जाता है या फिर पीठ पर बाल पकड कर बैठ जाता है और ऐसे में माँ ३०-३० फीट की छालांग लगाती है, फिर भी बच्चा गिरता नहीं है। क्या मनुष्य का बच्चा आज जन्म लेकर...तुरंत ही अपनी माँ को पकडकर-चिपककर रह सकता है? क्या माँ वैसे छलांग लगा सकती है ?...कभी नहीं । ४) जैसे बन्दर और २७२ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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