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________________ अच्छा ! दुनिया के किस कोने में वैसा वातावरण था और किस कोने में वैसा विकास योग्य वातावरण नहीं था? अच्छा, भूतकाल के हिसाब के कब वैसा वातावरण था और कब नहीं था? इसका उत्तर क्या मिलेगा? ये सब निरर्थक बातें हैं। अच्छा, बन्दर की जाति से मानव बनने में कितना काल बीता? कितने वर्ष लगे? डार्विन कहेगा हजारों-लाखों वर्ष लगे । तो डार्विन उतने काल से पीछे के हजारों-लाखों वर्षों का काल कहाँ देखने गया था? मान लो । सोच विचार कर अनुमान से बात बैठाई । अच्छा ठीक है । जब कल्पना की उडाने भर के विचार बैठा लिये तो फिर अभी बन्दरों के बारे में वैसे विचार क्यों नहीं बैठाए? और यदि कुछ ही बन्दरों का विकास हुआ और कुछ ही बन्दरों को वैसा वातावरण मिला... शेष लाखों बन्दरों को वैसा वातावरण नहीं मिला और वह भी हजारों लाखों वर्षों के इतिहास में भी संभव नहीं बन पाया? आज भी दुनिया के किस कोने में, किस देशमें बन्दर नहीं हैं ? प्रायः सभी देशों में हैं। सभी देशों के जंगलों में शहरों में भी बन्दर हैं। आज भी देश-क्षेत्र की अपेक्षा से बन्दर की सेंकडों जातियाँ हैं । बन्दर की जाति का सर्वथा अभाव नहीं हो चुका है । अभी भी बन्दर का अस्तित्व बरोबर बना हुआ है । आज है इससे यह अनुमान जरूर होता है कि.. वर्षों चला आ रहा है । भूतकाल से लगातार चला आ रहा है । यहाँ प्रश्न यह उठता है कि जब बन्दरों का अस्तित्व त्रैकालिक है । तीनों काल में है । अतः हम कह सकते हैं कि... भूतकाल के हजारों वर्षों में था, आज है, और भविष्य में भी बन्दरों का अस्तित्व रहेगा । तो फिर... सिर्फ उस काल के बन्दरों का ही विकास हुआ और वे ही... मानव बन गए और शेष क्यों नहीं मानव बने? इसका क्या उत्तर रहेगा? ___ अच्छा यदि विकास की प्रक्रिया सतत–निरंतर चलती ही रहती है तो फिर... आज जो बन्दर हैं उनका विकास क्यों नहीं हुआ? या क्यों नहीं हो रहा है ? शायद आप कहेंगे कि... हो रहा है । धीरे-धीरे होता है । इस विकास की प्रक्रिया में काफी ज्यादा समय लगता है । हजारों-लाखों वर्ष लग जाते हैं । ठीक है । यदि बाप-दादा-परदादा आदि की पीढि से देखते ही आए हो और वे अपने पुत्र-पौत्र-प्रपौत्र आदि को कहते ही जाय सूचित करते जाय तो क्या उससे ३००, ५०० वर्षों में भी बन्दरों के रत्तीभर विकास की प्रक्रिया देखी जा सकती है । यदि होती तो सामने दिखाई देती । किसी भी बन्दर में परिवर्तन आता । विकास होता । उसकी खाने पीने की, रहन-सहन की प्रक्रिया में सुधार आता। बोलने की भाषा में सुधार आता । लेकिन आज दिन तक तो जितने भी बंदर हैं वे मनुष्य की तरह एक अक्षर भी बोल नहीं सकते हैं। आज के जितने बन्दर हैं उसकी भी परंपरा डार्विन के विकासवाद की समीक्षा २७१
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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