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है। हाँ, एक जीव के संसार का अन्त आना संभव है, यदि वह जीव मोक्ष की दिशा में प्रयाण कर ले और मोक्ष के अनुरूप सम्यक्त्व का बीज बोकर आगे बढ़ें... और क्रमशः प्रगति करता करता आगे बढकर मोक्ष में चला जाय तो उस जीव का अपना संसार पूरा हो जाएगा । अपनी भव परंपरा - संसार का अन्त आ सकेगा। लेकिन समग्र सृष्टि जो अनन्त जीवों की है उसका अन्त कभी भी सम्भव नहीं हैं। समग्र संसार का अन्त कभी भी न आने के कारण संसार अनन्तकाल तक ऐसा ही चलता रहता है । कालिक परिवर्तन उस उस काल में होता रहता है । लेकिन उससे सर्वथा अन्त नहीं आता है । इसलिए यह संसार अनन्त है । तथा अनादि काल से चला आ रहा है । और भविष्य में भी अनन्त काल तक चलता ही रहेगा । अतः इसे शाश्वत कहते हैं ।
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डार्विन के विकासवाद की समीक्षा
पाश्चात्य विद्वान डार्विन ने Evolution theory की विचारधारा जगत् के समक्ष रखी है लेकिन वह सर्वथा गलत सिद्ध हो रही है । यह Cell के आधार पर विकास की प्रक्रिया है । जबकि भगवान महावीर प्रभु ने आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया The Spiritual Evolution theory जगत् के जीवों को समझाई है ।
डार्विन के विचारों से आज के मनुष्य का आधार बन्दर पर है । मनुष्य पहले बन्दर था और धीरे धीरे विकास होते हुए .. आज का मनुष्य का रूप बना है। इससे यह निश्चित होता है कि एक दिन धरती पर मानव था ही नहीं । परन्तु बन्दर जरूर थे । अब सोचिए कि यदि सिर्फ बन्दर ही थे... तो ऐसी कैसी विकास की प्रक्रिया हुई ? उसमें क्या हुआ कि बन्दर से मनुष्य बन गया ? अच्छा यह भी सोचें कि कुछ ऐसी प्रक्रिया हुई जिसके आधार पर बन्दर मनुष्य बन गया ... . लेकिन सभी बन्दरों का विकास क्यों नहीं हुआ ? क्यों अन्य बन्दर मनुष्य नहीं बने ? शायद डार्विन कहेगा कि... वैसा एक ही प्रकार का वातावरण सबको समान रूप से नहीं मिला। यह भी भला कोई मानने की बात है ? और नहीं मिला तो क्यों नहीं मिला? कुछ ही बन्दरों को वैसा वातावरण मिला और कुछ को नहीं मिला यह कहाँ तक उचित है ?
अच्छा ! उसके बाद आज तक हजारों लाखों वर्षों का काल बीत गया तो भी क्या उन बन्दरों को अभी तक उस प्रकार का विकास के योग्य कोई वातावरण मिला ही नहीं ? क्यों नहीं मिला? क्या कारण बना ? क्या वातावरण भी ऐसा है कि कभी कभी ही उत्पन्न होता है ? या बनता है ? और एक बार बनकर फिर बाद में नहीं बनता है ? क्या ऐसा भी वातावरण का कोई नियम है ?
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आध्यात्मिक विकास यात्रा