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"प्रमाण-नय...." ग्रन्थ विमोचन
दक्षिण में पधारने पर पूज्यश्री का प्रथम चातुर्मास–बेंगलोर-चिकपेठ में हुआ था। उस समय नगरथ पेठ–हस्ति बिल्डर्स की जगह में विशाल प्रवचन मण्डप में जहाँ हजारों की संख्या में बेंगलोर की प्रवचन रसिक जनता उमडती थी । श्री संघ ने “अखिल भारतीय संस्कृत पण्डित परिषद” के पाँचवे अधिवेशन का आयोजन किया था। उस समय विद्वानों-पण्डितों की मांग के अनुरूप एक जैन दार्शनिक ग्रन्थ तैयार किया जाय की इच्छानुसार, पूज्य पंन्यासजी श्री अरुणविजयजी म.सा. ने पू. वादिदेव सूरी विरचित "श्री प्रमाणनयतत्त्वालोक" ग्रन्थ को सरल संस्कृत टीका तथा हिन्दी भाषान्तर के साथ तैयार किया। पूना के पण्डित श्रीमान रामचन्द्रशास्त्री जोशी ने टीका बनाई है। पूज्यश्री ने सरल हिन्दी भाषान्तर किया। और श्री चिकपेठ-आदिनाथ जैन मंदिर के ज्ञानखाते में से यह ग्रन्थ सुंदर रूप से छपवाकर प्रसिद्ध किया है । इम्प्रिन्टस् प्रेसवाले श्रीमान अंशुमालिन् शहा ने परिश्रमपूर्वक सुंदर कंपोज करके मुद्रण व्यवस्था संभाली।
रविवार दि. २५ नवम्बर के शुभ दिन श्री आदिनाथ जैन मंदिर-चिकपेठ में आयोजित विशेष विमोचन समारंभ में बेंगलोर के सुप्रसिद्ध विद्वान पण्डित श्रीमान के. टी. पाण्डुरंगी ने समारंभ में अध्यक्षता ग्रहण की। जैन दार्शनिक साहित्य पर विशेष प्रकाश डालकर सभा को जैन दर्शन की गरिमा समझाई । पी. सी. मानव जैसे विद्वान ने जैन साहित्य की आवश्यकता पर भार दिया। विद्वान श्रीमान वरदीयाजी ने पूज्यश्री के विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों की आवश्यकता पर भार दिया । श्रीमान केवलचन्दजी पिरगल ने ज्ञानदीप प्रगटाकर श्री प्रमाणनयतत्त्वालोक ग्रन्थ का विमोचन करके पूज्य गुरुदेवों को अर्पण किया। पूज्यश्री द्वारा लिखित –“पाप.की सजा भारी” तथा “कर्म की गति न्यारी” जैसी तत्त्वों से भरी पुस्तकों की विशेष प्रशंसा की । पू. पंडितजी रामचन्द्रशास्त्री जोशी ने ग्रन्थ का परिचय दिया । पू. मुनिश्री मुनिचन्द्र विज़्यजी म. ने वादिदेवसूरि म. ग्रन्थकर्ता का परिचय दिया। पूज्यश्री पंन्यासजी म. ने १ घण्टे का तत्त्वपूर्ण व्याख्यान देकर सबकी आध्यात्मिक प्यास बुझाई । दार्शनिक ग्रन्थों का तथा दार्शनिक जगत के जैन विद्वानों का परिचय भी पूज्यश्री ने कराया । दार्शनिक ग्रन्थों के प्रकाशनों की योजना की रूपरेखा समझाई । बम्बई की संस्था- "श्री महावीर विद्यार्थी कल्याण केन्द्र” ने इस ग्रन्थ की दूसरी आवृत्ति प्रकाशित की तथा अन्य भी ग्रन्थ प्रकाशित कर रही है। श्री चिकपेठ के आदिनाथ जैन संघ के ज्ञानखाते के उदार आर्थिक सहयोग से प्रकाशित इस ग्रन्थ की समाज ने काफी प्रशंसा की। तथा विद्वानों में भी काफी प्रशंसनीय अभ्यासोपयोगी ग्रन्थ सिद्ध होगा।