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________________ रूपक दृष्टान्त उपमा के आधार पर दिये जाते हैं जिससे व्यक्ती की बुद्धि उस कल्पना की उडान में अनन्त की अनन्तता को समझने में सफल हो सके। निगोद से निकला हुआ हमारा जीव अनन्त जन्म-मरण करता हुआ यहाँ तक आया । अब इसके बारे में... रूपक उपमा के दृष्टान्त से हम जानने का प्रयत्न करें कि अनन्त अर्थात् कितने भव हुए हैं ? एक 1 ३६०० और x १००० कल्पना करिए कि ... केवलज्ञानी सर्वज्ञ प्रभु के १ हजार मुँह हो और प्रत्येक मुँह १ सेकंड में एक बार में एक भव का मात्र नामनिर्देश ही करें। तो १ सेकंड में एक साथ १००० मुँह से कितने भव कहेंगे ? १००० । १ मिनिट में ६० सेकंड होती हैं तो १ मिनिट में कितने भव कहेंगे ? ६०००० इस तरह १ घंटे में कितने कहेंगे ? १ घंटे में ६० मिनिट होती हैं । इस तरह ६० x ६० ३६००००० भव कहेंगे । इस तरह १ दिन के २४ घंटे में कितने भव केवलज्ञानी कहेंगे । ३६००००० x २४ घंटे ८६४००००० इतने भव सर्वज्ञ प्रभु ने कहे । भगवान जरूर केवलज्ञानी है। लेकिन बोलने के लिए तो उन्हें भी क्रम चाहिए । शब्दों के क्रम से ही बोलेंगे। हाँ, केवली भगवान् केवलज्ञान से सब कुछ एक साथ जानते हैं, देखते हैं, सब बात ठीक। लेकिन बोलेंगे तो क्रमशः ही । क्रम से शब्दोच्चार करके बोलते हुए समय लगेगा । = = इस तरह केवलज्ञानी का १००० वर्ष का अयुष्य हो और वे निरंतर - अखंड रूप से बोलते ही जाय तो ऐसे १००० वर्ष में उन्होंने कितने भव कहे ? और जैसे ही उनका आयुष्य पूर्ण हो जाय उनके बाद दूसरे केवलज्ञानी भी १००० वर्ष के आयुष्यवाले पहले केवली ने जहाँ तक कहे हैं उनके आगे निरंतर अखण्ड रूप से १००० वर्ष तक कहते ही रहे, फिर दूसरे केवली के आयुष्य की समाप्ति के बाद तुरन्त तीसरे केवली आगे निरंतर कहते ही रहे । फिर चौथे केवली, फिर पाँचवे केवली, फिर छट्ठे .. ३० वे, ५० वे, फिर ८० वे, फिर १०० वें, फिर ५०० वे, फिर १००० वें केवलज्ञानी आगे .... आगे... निरंतर भव कहते ही रहें तो हजार-हजार वर्ष के आयुष्यवाले हजार-हजार मुखवाले . निरंतर-अखण्ड रूप से कहते हुए कितने भव कहेंगे ? अर्थात् १०००००० वर्षों में प्रति सेकंड के हजार भव के हिसाब से कुल कितने भव कहेंगे ? .... २६८ = हजार-हजार वर्ष के आयुष्यवाले ऐसे हजार केवलज्ञानी के निरंतर कह चुकने के बाद जिस जीव के भव कह रहे हैं वह जीव पूछे कि... हे भगवन् ! मेरे कितने भव कहे हैं और अभी कितने कहने शेष हैं मुझे जानने की ऐसी जिज्ञासा हुई है, अतः दोनों तरफ की संख्या जानना चाहता हूँ । कृपया उत्तर फरमाइये । सर्वज्ञ प्रभु जो केवलज्ञानी हैं वे आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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