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की ३ चीजों का आधार एक मात्र मनुष्य जन्म की प्राप्ति पर है । यदि मनुष्य का जन्म मिलेगा तो आगे के तीनों अंश भी मिलेंगे। लेकिन मनुष्य का जन्म ही मिलना बहुत मुश्किल है... इसकी दुर्लभता कितनी भयंकर कक्षा की है यह तो जब दृष्टान्त देखेंगे तब पता चलेगा। शास्त्रकार महर्षि फरमाते हैं कि
एक सौ वर्ष की वृद्ध बूढी माँ जिसकी आँखों की रोशनी भी घट चुकी हो और वह अनाज बीणने बैठे । अनाज में भी राई और रागी आदि मिश्र हों । जिसमें बिल्कुल देखने में समानता हो । ऐसी स्थिति में लाखों मण राई-रागी-बाजरी आदि समान अनाज इकट्ठे हो, और फिर उस वृद्धा को साफ करके सभी वापिस अलग-अलग करने का कहा हो तो कितना संभव-असंभव लगता है। वैसे ही मनुष्य जन्म की प्राप्ति भी इतनी ही संभव-असंभव लगती है ।
. दूसरे दृष्टान्त में इन अनाजों को मिश्रित करके आटा बना दिया गया हो और फिर ऊँचे पर्वत की ऊँचाई पर से हवा में उसे उड़ा दिया जाय और फिर ऐसी वृद्धावस्था में वृद्ध स्त्री को आटे के कण-कण में से ढूँढ ढूँढ कर..वापिस अलग-अलग इकट्ठे किये जाएं। जिससे वे सब उतने ही प्रमाण में वापिस इकट्ठे हो जाएं । यह कहाँ तक संभव है ? कितना संभव लगता है ? उतना संभव मनुष्य जन्म पाने में लगता है।
इसी तरह एक अन्ध मनुष्य चक्रवर्ती के घर पर स्वादिष्ट भोजन करके फिर चक्रवर्ती ने ६ खण्ड पृथ्वी के समस्त राज्य के सभी गाँवो–घरों में क्रमशः उस भिखारी के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी और वह रोज प्रत्येक घर-घर जाकर भोजन कर रहा हो। लेकिन उसे चक्रवर्ती के घर का भोजन ही ज्यादा प्रिय लगता है । बस वह रोज उसी का स्मरण करता है । लेकिन चक्रवर्ती के छः खण्ड पृथ्वी के समस्त गांवों के सभी घरों का क्रम पूरा हो जाय। बाद यदि आयुष्य बचेगा तो उस भिखारी को पुनः चक्रवर्ती के घर भोजन मिलना जितना संभव लगता है उतना ही संभव ८४ लाख जीव योनियों में मनुष्य का जन्म मिलना संभव लगता है ।
या फिर अन्ध भिखारी पुरुष को चक्रवर्ती के किल्ले के खल्ले द्वार में प्रवेश मिले और वहाँ प्रिय भोजन मिल जाय और उसके बाद वह बाहर निकलकर अन्यत्र घूमता रहे । किल्ले की दिवाल का हाथ से स्पर्श करते.... करते यदि वह अन्ध भिखारी दूसरी बार पुनः चक्रवर्ती के घर को पाने के लिए घूमता रहे...लेकिन दरवाजा और दिवाल आदि में बनावट इतनी समानता हो कि दोनों में भेद पहचानना ही असंभवसा हो और ऐसे में वह अन्ध भिखारी पूरी प्रदक्षिणा करके घूमता हुआ वापिस दरवाजे को पाए.. उसे महल
डार्विन के विकासवाद की समीक्षा
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