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वहाँ प्रथम प्रत्येक वनस्पति काय में पेड-पौधा फल-फूल बनता है । वहाँ से फिर नीचे... स्थूल(बादर) साधारण वनस्पति काय में जाकर आलुप्याज-लसून-आदु-गाजर-मूला के रूप में जन्म लेता है। और इतना ही नहीं यहाँ से एक कदम और नीचे पतन हो तो-सीधे निगोद के गोले में भी जाकर गिरता है। वापिस सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय के रूप में
निगोद बनकर रहता है। जहाँ से निकला था ... जीव ने जहाँ से अपनी विकास यात्रा का प्रारंभ किया था उसी निगोद के जन्म में वापिस जाकर गिरा... फिर उसी निगोद के गोले में अनन्त जन्म के चक्र में फँस जाएगा। औरों की बात तो क्या करें १४ पूर्वधारी ज्ञानी गीतार्थ महापुरुष भी प्रमादवश गिरकर पुनः निगोद तक जा सकते हैं । यह पतन कितना भयंकर अधम कक्षा का हुआ?
उत्थान-पतन में काल
आत्मा को विकास करते करते उत्थान की प्रक्रिया में ऊपर चढते चढते कितना काल लगा है ? कितने भव बिताने पडे हैं ? अनन्त भव बिताए, अनन्त पुद्गल परावर्त का लम्बा काल लगा है । १४ पूर्वधारी की कक्षा तक पहुँचना कोई सामान्य खेल नहीं है। इस ऊँचाई तक पहुँचने के लिए जीव ने कितने भव बिताए? कितना काल बिताया और कितना परिश्रम उठाया होगा? बहुत मुश्किल से इस ऊँचाई तक पहुँचा होगा जीव। शास्त्रकार महर्षियों ने मनुष्य जन्म की दुर्लभता के दश दृष्टान्त बताए हैं। मनुष्य जन्म की दुर्लभता
चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो।
माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि अ वीरिअंमि ।। उत्तराध्ययन आगमशास्त्र में श्री वीर प्रभु ने बताया कि इस संसार चक्र में जीवों को ४ वस्तुएं परम दुर्लभ हैं- १) मनुष्य का जन्म, २) धर्म का श्रवण, ३) धर्म की श्रद्धा, और ४) श्रद्धानुसार आचरण में उत्साह । इन चारों की परम दुर्लभता बताई हैं । इन ४ में आगे
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आध्यात्मिक विकास यात्रा