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________________ परिपूर्ण करके जीव ने एक कदम और आगे बढाया और मन भी बना लिया जिससे वह जीव संज्ञी-पंचेन्द्रिय जीव बना। समनस्क अवस्था धारण की। यह विकास काफी उपयोगी सिद्ध हुआ। अब वह जीव एक विचारक बना । विचारशक्ती बढी । सोचने लगा। हेय-ज्ञेय का ख्याल आने लगा। मन इंद्रिय नहीं है, अतीन्द्रिय है। फिर भी आत्मा तक ज्ञान पहुँचाने में पाँचों इन्द्रियों से भी ज्यादा मन का काम था। काफी ज्ञान बढाने में मन सहायक बना। पाँचों इन्द्रियों से सिर्फ २३ विषय ही ग्रहेण हो सकते थे जबकि मन के जरिए... सोचने विचारने की क्षितिज बढी। जलचर से स्थलचर में आगे बढा । स्थूल अर्थात् पृथ्वी... भूमिपर. चलने वाले प्राणी । स्थलचर के अंतर्गत चतुष्पद-४ पैर वाले जानवर भुजपरिसर्प-भुजाओं को भी पैर बनाकर उसके आधार पर चलना । ऐसे जीवों में बन्दर-चूहा-छिपकली आदि अनेकों की गणना होती है। और आगे उरपरिसर्प-साँप बना । उर = उदर = पेट के बलपर दौडने-भागनेवाला साँप बना। यहाँ तक विकास यात्रा एक मात्र एक ही तिर्यंच गति में हुई। अबकी बार गति जरूर बदली । साँप मरकर नरक गति में गया। नारकी बना । लेकिन पंचेन्द्रियपना वही रहा । नरकगति में नारकी बनकर जीव ने भारी दुःखों की सजा भुगती । आखिर वहाँ का जन्म भी पूरा तो करना ही पडता है । यद्यपि यह विकास नहीं है, लेकिन विनाश है, पतन है । गति की दृष्टि से पतन जरूर है, लेकिन जाति की दृष्टि से पतन नहीं है । पंचेंन्द्रियं पर्याय में भी जीव काफी लम्बे काल तक घूमता रहा । नरक गति से बाहर निकलकर... जीव पुनः तिर्यंच गति में आया । पक्षी की योनि में जन्म लेकर पक्षी बना । पक्षियों में भी शाकाहारी श्रेष्ठ कक्षा के हैं। मांसाहारी अधम कक्षा के हैं । शाकाहारी कई पापों से बच जाता है । शाकाहारी ऊपर उठता है । विकास साधता है । मांसाहारी का फिर पतन होता है। नीचे गिरता है । जीव... अब आगे बढता–बढता बन्दर की पर्याय में आया । बन्दर के भव में भी है तो पूरा पंचेन्द्रिय ही । संज्ञि-समनस्क है। काफी विकसित अवस्था है लेकिन है तिर्यंच की गति । इसलिए अभी भी विकास काफी आवशिष्ट है। देव की ऊँची गति में प्रयाण तिर्यंच की गति में से जीव बन्दर-गाय-भैंसादि कई पशु-पक्षी के भव करके मृत्यु के बाद अपना विकास साधते हुए ऊँची देवगति में भी जाते हैं । उदाहरण के लिए चंडकौशिक साँप भी देवगति में गया। ८ वें सहस्रार देवलोक में देव बनकर उत्पन्न हुआ। २५८ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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