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सोना-चांदी आदि धातु की जातियों में तथा मिट्टी आदि की स्थिति में जीव आया। पार्थिव देहधारी एकेन्द्रिय पृथ्वीकाय बना । इसमें भी अंगुल के असंख्यात वें भाग की अवगाहनावाला छोटा सा शरीर धारण किया । हजारों वर्षों का आयुष्यकाल लेकर जीव रहा। फिर आगे बढ कर अग्निकाय में आया। अग्नि की ज्वाला-कण आदि रूप में बना। और एकेन्द्रिय में वायुकाय में आकर हवा बना। हवा के रूप में भी जीवन बिताया। इस तरह इतने सभी भव एकेन्द्रिय की जाती में तिर्यंच गति में बिताए... । आगे बढता बढता जीव अब दोइन्द्रिय की जाति में कदम रखता है। वहाँ कृमि-शंख-जलो-अलसिया आदि की पर्याय के रूप में जन्म लिये । अब शरीर जरूर बडा था। स्वतंत्र रूप से अकेले रहना था । खाना-पीना आदि की प्रवृति थी। ____वहाँ से आगे तेइन्द्रिय की जाती में आया। एक के बाद दूसरी आगे की इन्द्रिय भी प्राप्त होना एक विशेष पुण्य प्रकृति का उदय है । और जीव के आगे बढ़ने की निशानी है । ३ इन्द्रियवाले चिंटी-मकोडा-अनाज का कीडा, खटमल-जूं आदि के रूप में जन्म मिला । बडा शरीर बना । २ के बदले १ और ज्यादा ऐसी ३ इन्द्रियाँ प्राप्त हुई । नासिका की विशेष प्राप्ति से सुगंध-दुर्गंधादि प्रकार की गंध को ग्रहण करता रहा ।
तेइन्द्रिय से भी आगे जीव चउरिन्द्रिय में गया। वहाँ और बडा शरीर था। मक्खी-मच्छर भौंरा-तीड आदि का शरीर धारण किया। एक और चौथी इन्द्रिय मिलीआँख । इस आँख से आज पहली बार दुनिया देखने लगा । पंखों के आधार पर आकाश में उडने भी लगा। खुशी काफी ज्यादा थी। लेकिन क्या हो, आखिर थी तो तिर्यंच गति ही । यहाँ तक विकलेन्द्रिय के भव थे। . इसमें भी आगे बढा और अन्तिम इन्द्रिय पाँचवी श्रवणेन्द्रिय प्राप्त की । इन्द्रियों
की प्राप्ति की दिशा में यह पाँचवी इन्द्रिय बडी ही महत्व की थी । श्रवण करना–सनने के लिए मिलना यह भी ज्ञानसहायक इन्द्रिय है । पंचेन्द्रियपना प्राप्त हुआ। बस, जीव के विकास की दिशा में इन्द्रियों की प्राप्ति की दृष्टि से यही अन्तिम विकास है। जगत् में पाँचवी के बाद छट्ठी इन्द्रिय नहीं है । इन्द्रियों की प्राप्ति की दिशा में जीव को अन्तिम पाँचवी श्रवणेन्द्रिय तक ही आकर रुक जाना है।
अब इन्द्रिय जरूर बदल्ली और बढी, लेकिन गति नहीं बदली.... अतः वह जीव रहा तो तिर्यंच गति में ही । इस बार जलचर में जाकर मछली मगरमच्छ आदि बना। १-२ इंच से लेकर १००-२०० फीट लम्बी मछली के शरीर भी धारण किये । पंचेन्द्रिय
डार्विन के विकासवाद की समीक्षा
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