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११. नारकी के जीवों की उत्पत्ति योनि संख्या
४ लाख १२. तिर्यंच पंचेन्द्रिय के जीवों की उत्पत्ति योनि संख्या- ४ लाख १३. मनुष्य के जीवों की उत्पत्ति योनि संख्या
१४ लाख इन १३ प्रकार के वर्गीकरण में जीवों की कुल योनि संख्या ८४ लाख है। इस संसार के समस्त जीवों को जन्म लेने के लिए इन ८४ लाख योनियों में उत्पत्ति स्थानों में आना पडता है । वहीं जन्म लेना पडता है । उसी पहचान से जीव पहचाना जाता है । यह जीवों का संसार है । अनादि-अनन्त काल से चल रहा है । और अनन्त बार जीवों ने जन्म-मरण धारण किये हैं। अनन्त बार जन्म धारण करके भी आखिर तो इन वर्गीकृत १३ प्रकारों में ही जीवों को जन्म धारण करते रहना पडता है । जब १३ ही भेदों में जन्म धारण करके रहना है तो बार-बार जन्म धारण करते-करते कितनी बार जन्म धारण किया होगा? अनन्त बार । अनन्तबार में एक-एक काय में कितनी बार जन्म धारण किया होगा? फिर भी उत्तर यही आएगा-अनन्तबार और कब तक जन्म धारण करते रहना पडेगा? इसके उत्तर में शास्त्रकार महर्षि कहते हैं कि जहाँ तक यह जीव मोक्ष में नहीं जाएगा तब तक उसे जन्म धारण करने ही पडेंगे। क्योंकि जन्म धारण किये बिना वह संसार में रह ही नहीं सकता है । संसार के जन्मों में स्वकाय स्थिति
देव नरक के जीवों की स्वकायस्थिति सिर्फ
१ भव की ही है। ४. पंचेन्द्रियकाय में गया हुआ मनुष्यादिप्रधान जीव उत्कृष्ट से ७ - ८ ___ भव तक स्वकायस्थिति में रहता है। ३. १, ३ और चार इन्द्रियवाले जीव संख्यात हजार वर्ष रूप संख्यात काल तक उत्कृष्ट से स्वकायस्थिति में
रहते हैं। २. पृथ्वी - पानी - अग्नि - वायुकाय - ये चारों प्रकार के जीव उत्कृष्ट रूप से असंख्यात अवसर्पिणी - उत्सर्पिणी काल पर्यन्त स्वकायस्थिति में
रहते हैं।
१. साधारण वनस्पतिकाय में जीवों की स्वकायस्थिति अनन्त उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी
काल की है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा