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उत्तराध्ययन सूत्र के वे अध्ययन में परमात्मा श्री वीर प्रभु ने ५ वे से वे श्लोक में १० श्लोकों में उपरोक्त ५ प्रकारों में समस्त जीवों का वर्गीकरण करके उत्कृष्ट स्वकायस्थिति का काल बताया है । अर्थात् अपनी इन्द्रियों की ही जातीवाले जन्मों में जीव बार-बार जन्म धारण करता ही रहे । उसी जाती उसी इन्द्रियवाली जाती को छोडकर बाहर जाय और उसमें ही जन्म धारण करता जाय उसे स्वकाय स्थिति कहते हैं। भले ही जन्म का रूप-रंग-आकार-प्रकार बदलता रहे। जैसे चिंटी में से मकोडा बने, फिर अनाज का कीडा, फिर जूं, फिर लीक, फिर खटमल, फिर रेशम का कीडा आदि बनता ही जाय । इनमें देखिए जन्म बदलते ही जाते हैं । लेकिन इन्द्रिय की जाति नहीं बदलती है । तेइन्द्रियपना सबमें एक समान ही रहता है । इसे स्वकाय कहते हैं । इसमें जीव जितना लम्बा काल बिताता है उसे स्वकाय स्थिति काल कहते हैं। काफी लम्बा समय जीव इसमें बिता देता है । इससे जीव का आगे का विकास रुक जाता है। विकास यात्रा जो सतत आगे ही बढती रहनी चाहिए उसमें रुकावट - बाधा आ जाती है । लेकिन क्या किया जाय ? जीवों के कर्म भी तो वैसे हैं ? वैसे बांध भी तो रहे हैं । अतः उस हिसाब से परिभ्रमण भी होता ही रहता है ।
क्रमश: आगे बढता हुआ जीव
भौगोलिक संसार १४ राजलोक का है। जिसे अखिल ब्रह्माण्ड cosmos कहते हैं। और ८४ लाख जीव योनियों में पाँचों जातियों में चारों गति में परिभ्रमण करते रहना यह जीव का संसार है । अनादि से चल रहे इस भव- भ्रमण में अनन्त भव करता करता जीव अपना विकास करता हुआ आगे बढता है । यह विकास शारीरिक है । आगे आगे के शरीर धारण करते जाना है । जीव की यह विकास यात्रा निगोद से चल रही है । निगोद
गोले में जीव का अस्तित्व यह जीव की प्राथमिक स्थिति है । सबसे पहले जीव निगोद के गोले में था । निगोद की गणना वनस्पतिकाय में की जाती है। जिसमें सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय के भेद में कहे जाते हैं । अतः हम ऐसे कह सकते हैं कि जीव सर्वप्रथम वनस्पतिकाय में था । वहाँ से क्रमशः उसकी विकास यात्रा आगे बढी है। सूक्ष्म साधारण वनस्पति काय में से आगे बढता हुआ जीव सर्वप्रथम बादर साधारण वनस्पतिकाय जो आलु -प्याज रूप है उसमें आता है । सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय जो निगोद रूप अवस्था थी वह सूक्ष्मतम होने से दृष्टिगोचर नहीं थी । देखनी संभव भी नहीं थी । अतः न दिखाई देनेवाले की अपेक्षा दिखाई देनेवाले जीवों की दृष्टि से शुरुआत माननी हो तो
डार्विन के विकासवाद की समीक्षा
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