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कबूतर आदि पशु-पक्षी वाले समस्त जीवों की गिनती गति की दृष्टि से तिर्यंच गति में होती है । इन्द्रियों की अपेक्षा से जाति निर्धारित होती है। लेकिन गति नाम कर्म अलग है । जो जीवों की गति निर्धारित करता है।
दूसरे स्वस्तिक में मनुष्य गति का गमनागमन दिखाया गया है। मनुष्य की गति सर्वोच्च प्रकार की सर्वश्रेष्ठ गति है । धर्माराधना की दृष्टि से ऊँची गति है । लेकिन मनुष्यों की करनी भी तो तथाप्रकार की ऊँची होनी चाहिए। यदि धर्म करनी पुण्य–परोपकार की ऊँची करनी हो तो मनुष्य मरकर मनुष्य भी बनता है। सर्वश्रेष्ठ प्रकार की धर्माराधना के बल पर जीव देवगति में भी जाता है। और अगर अधम प्रकार के पाप कर्म करता है तो तिर्यंच की पशु-पक्षी में भी जाकर जन्म लेता है । और अत्यन्त क्रूरता आदि के कारण हिंसा-हत्या-महापाप आदि करता है तो मरकर जीव नरक गति में भी जाता है। इस तरह मनुष्य स्वकृत कर्मानुसार चारों गति में से वापिस मनुष्य की गति में आता भी है। यह मनुष्य गति के जीवों का गमनागमन है।
चौथे स्वस्तिक में देवगति के देवताओं का गमनागमन दिखाया गया है । देवगति कितनी भी ऊँची हो, कितनी भी अच्छी हो, आखिर है तो संसार में । देव गति में भी जन्म-मरण तो सतत होते ही रहते हैं। और रोज जन्म होता ही रहता है इससे यह सिद्ध होता है कि कई जीव बाहर से आते होंगे। तभी तो स्वर्ग की देवगति में जन्म होता होगा? बिना जीव के आए जन्म कभी भी नहीं होता है । देवगति में सिर्फ २ ही गति में से जीव आते हैं । एक मनुष्य गति में से और दूसरी तिर्यंच की गति में से जीव आते हैं । इस तरह देव गति में भी रोज भर्ती होती ही जाती है । देवगति के देवता वहाँ मरकर वापिस देव नहीं बनते हैं । यह शाश्वत नियम है। कोई भी देवता मृत्यु के पश्चात वापिस देवता नहीं बनता है । और न ही देव मरकर नरक में जाता है । क्योंकि नरक गति में जाने योग्य उनके पाप नहीं होते हैं । वे देवता ज्यादा से ज्यादा तिर्यंच की पशु-पक्षी की गति में जाते हैं।
और भी ज्यादा पतन होने पर देवता तिर्यंच गति में-एकेन्द्रिय जाति में पृथ्वीकाय में हीरे, रत्नादि में उत्पन्न होते हैं । यह उनका उत्कृष्टतम पतन है । देवताओं की चारों निकायों में से नीचे नीचे के देवताओं की यह स्थिति है । लेकिन ऊपर-ऊपर के ऊँची कक्षा के देवता ऊँची मनुष्य की गति में आते हैं। यहाँ तक की ग्रैवेयक के देवता मनुष्य गति में आकर अल्प भवों में मोक्ष जा सकते हैं। अनुत्तर देवलोक में विजयादि के देवता २ भव करके मोक्ष में जाने वाले होते हैं। और अंतिम सर्वार्थसिद्ध विमान के देवताओं का जीव एकावतारी होता है । वहाँ से च्यवन पाकर महाविदेह में जन्म लेकर सीधे ही मोक्ष में जाते
डार्विन के विकासवाद की समीक्षा
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