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________________ ऊपर के इस चित्र में देखिए-- यह स्वस्तिक का चित्र है। स्वस्तिक ४ गति का सूचक है । १ तिर्यंच गति, २ मनुष्य गति, ३ नरकगति, और ४ देव गति । बस ये चार गतियाँ संसार में हैं । पाँचवी गति कोई है ही नहीं। इन चारों गति में जीवों का वास है। सर्वत्र जीव रहते हैं। यही संसार है। संसार की इन चारों गतियों में जीव कर्मवश सतत परिभ्रमण करता ही रहता है । एक गति से जीव दूसरी गति में जाना, वापिस जीव दूसरी गति से तीसरी में जाय या फिर वापिस पहलेवाली गति में आता है या फिर कर्मवश चौथी गति में जाता है । इस तरह चारों गति संसार में सतत गमनागमन होता ही रहता है। जीव कहीं भी कभी भी एक ही गति में रुककर बैठा नहीं रहता है। एक गति से दूसरी गति में भी जाना होता है या फिर एक गति में ही बार बार जन्म होते रहते हैं तो जन्म तो बदलते ही रहते हैं । जन्म से लेकर मृत्यु तक का एक जीव होता है । उस जीवन काल का निर्धारित आयुष्य होता है। तदनुसार आयुष्य पूर्ण करके जीव उसी गति में भी रह सकता है । या फिर अन्य गति में भी जा सकता है। इस तरह जीवों का चारों गति में गमनागमन होता है। पहले स्वस्तिक में ४ गतियाँ दिखाई गई हैं। तीसरे स्वस्तिक में तिर्यंच गति के पशु-पक्षी आदि गाय, भैंस, बैल, बकरी, हाथी, घोडा, साँप, ऊँट, मछली, मगरमच्छ, बन्दर आदि पशु तथा कौआ, तोता, मैना, चिडिया, हंस आदि पक्षी सभी जीव स्वकृत शुभाशुभ कर्मानुसार चारों गति में जाते हैं । पशु-पक्षी मरकर मनुष्य भी बनते हैं और देवगति में जाकर देव बनते हैं। तथा किये हुए पाप कर्मों के अनुसार सिंहादि को नरक गति में भी जाना पडता है । इसी तरह कई पशु-पक्षी के जीव मरकर वापिस तिर्यंच की ही जाति में जन्म लेते हैं । गति-परिवर्तन नहीं होता है, वही रहता है । लेकिन जन्म बदलते हैं। हाथी मरकर घोडा बने, घोडा मरकर गधा बने, गधा मरकर कुत्ता बने इत्यादि अनेक प्रकार के पशु-पक्षी के जन्म धारण करते रहता है । इस तरह तिर्यंच गति के जीव चारों गति में परिभ्रमण करते हैं । मृत्यु के अनन्तर चारों गति में जाते हैं। १ से ५ जाति के जीव तिर्यंच गति में तिर्यंच गति बहुत लम्बी-चौडी काफी विशाल है । गति की दृष्टि से देव मनुष्य और नारकी जीवों के अतिरिक्त सभी जीवों का समावेश तिर्यंच गति में होता है । एकेन्द्रिय के अतिरिक्त सभी जीवों का समावेश तिर्यंच गति में होता है । एकेन्द्रिय के पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति के ५ स्थावर जीव, कृमि-कीट आदि दो इन्द्रियवाले जीव, चिंटी मकोडे आदि तेइन्द्रिय जीव, मक्खी-मच्छरादि चउरिन्द्रिय जीव, तथा हाथी, घोडे, कौए, २४८ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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