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४ गति के चक्र में परिभ्रमण
संसार और कुछ भी नहीं है... न तो किसी वस्तु विशेष का नाम है और न हीं किसी चीज को हम संसार कह सकते हैं। संसार नाम की कोई स्वतंत्र चीज - वस्तु नहीं है । संसार तो एकमात्र ८४ लाख जीव योनियों में जन्म-मरण धारण करते हुए परिभ्रमण करने को कहते हैं । जहाँ जीव सतत पुण्य-पाप की प्रवृत्ति करके कर्मोपार्जन करता रहे और कालान्तर में उनके विपाक (फल) रूप में सुख-दुःख को भुगतता रहे इसी को संसार कहते हैं ।
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जीव
तिर्यंचगति ४
| देवगति २
जीव
जीव
मनुष्यगति
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डार्विन के विकासवाद की समीक्षा
जीव
नरकगति २
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