________________
फिर आगे बढकर जीव....अग्निकाय में जाता है । अग्नि भी अग्निकाय के जीवों का पिण्ड स्थूल रूप है। दिखाई देती हुई ज्वाला, चिनगारी आदि अग्निकाय के आकार-प्रकार हैं । इसके बाद जीव वायुकाय में जाता है । हवा के रूप में भी जन्म धारण करता है । ये अरूपी शरीर धारण करते हैं । दिखाई नहीं देते हैं । परन्तु स्पर्श के द्वारा.. .. इनके अस्तित्व का अनुभव होता है । ये भी सूक्ष्म रूप में तो सर्वत्र लोक में फैले हुए हैं । स्थूल रूप में भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में दृश्य बनते हैं। विकलेन्द्रिय में जन्म
जीव की यात्रा इस तरह आगे बढ़ती ही जाती है। पाँच स्थावरों में पृथ्वी-पानी-अग्नि-वायु और वनस्पति के जन्मों की अनन्त बार-अनन्त काल तक करके बाद में जीव एकेन्द्रिय में से दोइन्द्रिय की जाती में आता है। इसमें जीव कृमि शंख-कोडी-अलसिये-नासूर के कीडे, जलो, बेक्टीरिया, आदि सैंकडों प्रकार के जन्म धारण करता रहता है । स्वकाय स्थिति अर्थात् अपनी ही दोइन्द्रिय की काया में बारबार जन्मना, पुनः मरना, पुनः इन्ही दोइन्द्रिय में जन्म लेते रहना इस स्वकाय स्थिति में जीव जन्म-मरण करता ही रहता है।
बेइन्दिय काय मइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे।
कालं संखिज्ज सन्नियं, समयं गोयम! मा पमायए ।। १०/१० ।। श्री उत्तराध्ययन आगम शास्त्र में परमात्मा श्री महावीर प्रभु गौतम गणधर को एक समय भी प्रमाद न करने के हेतु से सावधान करने के लिए कह रहे हैं कि- दोइन्द्रिय में गया हुआ जीव संख्यात हजार वर्ष काल तक उत्कृष्ट रूप से स्वकाय स्थिति करता है । अर्थात् संख्यात हजार वर्ष का काल वह जीव सिर्फ दोइन्द्रियवाले जन्मों में बिताता रहता है। पुनः पुनः जन्म-मरण दोइन्द्रियवाले जीवों में ही करना । उसमें से इतने वर्षों तक वह बाहर निकल कर आगे की इन्द्रियवाले शरीर को धारण नहीं करता है । जन्म लेकर फिर मृत्यु पाया । फिर दूसरा जन्म लिया। इससे हमको क्या लगता है ? वह जीव आगे बढ गया। लेकिन वह तो वहीं है । हाँ, मात्र आयुष्य का काल पूर्ण हो जाता है । अतः वह जन्म समाप्त करके दूसरा जन्म-दूसरा शरीर जरूर धारण कर लेता है, परन्तु .... अपनी ही दोइन्द्रियवाली काया पुनः धारण करता है । शरीर का आकार-प्रकार ही सिर्फ बदला है, परन्तु आगे विकासगति नहीं हुई है। आगे की ३ इन्द्रिय वाला नहीं बन पाया है। कभी कृमि में से मरकर बेक्टीरिया बन जाय तो फिर बेक्टीरिया में से मरकर जलो के रूप में
डार्विन के विकासवाद की समीक्षा
२३७