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________________ से स्वतंत्र रूप से रहने लगा । यह कितनी सुखद अवस्था है ? साधारण की तुलना में प्रत्येक की अवस्था में अनेक गुना ज्यादा सुख है । आनन्द है । प्रत्येक वनस्पतिकाय में भी जीव ने फल-फूल - अनाज - कठोल - तरकारियाँ - औषधियाँ आदि अनेक प्रकार के जन्म लिये | कभी भिण्डी, कभी सेब, कभी गेहूं- ज्वार- - बाजरी - मकाई, कभी गुलाब का फूल - कभी आम का वृक्ष - नीम- इमली के वृक्ष आदि के रूप में जाकर जन्म लेना पडा । वनस्पतिकाय में ही जीव को अनन्त काल बिता देना पडता है । फिर जीव आगे बढा । अप् काय पानी की योनि में जीव आया । यहाँ पर भी छोटा सा शरीर है और एक साथ असंख्य जीवों को साथ रहना है । अंगुल के असंख्यातवें भाग के समान पानी के जीव का शरीर होता है। कितना छोटा सा ..... . उस छोटे-छोटे शरीरों के मिलने से स्थूलरूप पानी बना और उसे हमने एक बूंद कहना शुरु किया । लेकिन यह एक भी असंख्य अप्काय के जीवों के शरीरों का पिण्ड है । असंख्य इकट्ठे होने पर ही बादर स्वरूप होता है । तभी दिखाई देने लगता है । दृश्य बनता है । अन्यथा दृश्य नहीं बन सकता । सूक्ष्म रूप में पानी के जीव सकल लोक में सर्वत्र फैले हुए हैं । और । स्थूल रूप धारण करनेवाले पानी के जीव लोक में सर्वत्र नहीं हैं। वे तो कुए - तालाब - नदी – झरने - समुद्र आदि स्थानों पर हैं। बरसात की पानी की एक बूंद में असंख्य अप्काय के जीव होते हैं । - 1 पानी में जीव- पानी में से जीव आगे बढता है और पृथ्वीकाय की योनि में जाता है । पार्थिव शरीर धारण करके पृथ्वी के आकार में आता है। मिट्टी - पत्थर - सोना-चांदी - तांबा - पीतल - लोहा आदि धातुएं बनता है 1 हीरा - मोती -‍ -रत्न बनता है । जगत् में सब प्रकार के पत्थर-मिट्टी-रेती आदि बनता है। अरे पारा, गंधक, हरताल, मनशील, निमक- काला सफेद निमक, फिटकरी आदि कई प्रकार के भिन्न भिन्न शरीर धारण करता है । इन पृथ्वीकायिक जीवों के शरीर भी अंगुल के असंख्यातवें भाग के जितने सूक्ष्म होते हैं । लेकिन एकसाथ जुडकर - मिलकर रहने से वे स्थूल स्वरूप में दिखाई देते हैं । अन्यथा सूक्ष्म स्वरूप में तो वे सकल लोक में फैले हुए हैं। इतने सूक्ष्म देह को धारण करने वाले पृथ्वीकाय की जाति के पार्थिव शरीरों का पिण्ड इकट्ठे होकर कितने बडे विशाल पहाड का रूप धारण कर लेते हैं। पूरी पृथ्वी इन पृथ्वीकायिक जीवों से भरी पडी है। सोचिए, एक पहाड में, पृथ्वी में पृथ्वीकाय के कितने जीव होंगे ? एक शिला - विशालकाय पत्थर.... कितने जीवों का पिण्ड होगा ? समस्त पृथ्वीकाय में जीवों की संख्या गिनने बैठें तो अनन्त की विशाल संख्या आएगी । I आध्यात्मिक विकास यात्रा २३६
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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