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________________ आगे के लिए “फोलो अप" व्यवस्था भी इसी धर्मार्थ दवाखाना में रखी गई। इस तरह परोपकार के क्षेत्र में भी चार चाँद लगाए ऐसे कार्य पूज्यश्री की पावन निश्रा में— पूज्यश्री की प्रेरणा से हुए हैं जो चातुर्मास को यशस्वी बनाने में चार चांद लगाते हैं। श्री महावीर जैन साधर्मिक कल्याण केन्द्र समग्र जैन समाज में जैन साधर्मिक बंधुओं की आर्थिक समस्या दिन-प्रतिदिन ज्यादा गंभीर बनती ही जा रही है। पूज्य पंन्यास प्रवर श्री अरुणविजयजी म.सा. ने समयसूचकता का ध्यान रखकर १०-१२ वर्षों पहले से ही इस दिशा में ज्यादा प्रयत्न किया; और समाज की सेवार्थ बम्बई, पूना, मद्रास, और बेंगलोर जैसे बडे चारों शहरों में “श्री महावीर जैन साधर्मिक कल्याण केन्द्र" की संस्थाएं स्थापित की । संस्थाओं का प्रमुख उद्देश आर्थिक स्थिति से कमजोर ऐसे जैन साधर्मिक बंधुओं के परिवारों को आजीविका की सुविधाएं उपलब्ध कराके उन्हें सक्षम बनाना । वे स्वयं अपने पैर पर खडे रहकर स्वाभिमान से जी सके । स्वयं अपनी रोजी-रोटी चलाने में समर्थ बन सके इसके लिए. उन्हें निर्व्याज १०-२०-२५ हजार तक की बडी राशी दी जा सके और उन्हें गृहउद्योग, कुटीर उद्योग की सीमा में व्यापार कराया जा सके वैसा करना । उन्हें कहीं भी हाथ लम्बा न करना पडे और भूखा भी न रहना पडे । वे स्वाभिमान से कमाते हुए अपनी इज्जत से सिर ऊंचा करके जी सके इसके लिए संस्थाओं के माध्यम से यह व्यवस्था सब जगह बैठाई गई है। समस्त बेंगलोरस्तर की तथा सर्वथा साम्प्रदायिक एवं ज्ञातिय भेद-भाव रहित प्रत्येक जैन परिवार को ऊपर उठाने के लिए यह संस्था बनाई गई । पूज्य पंन्यासजी म.सा. ने अथाग परिश्रम करके प्रतिवर्ष एक दाता ग्यारह हजार रुपए प्रदान कर सकें ऐसे ५० सदस्य बनाए । तथा कुछ सामान्य फण्ड भी इकट्ठा किया गया । सुव्यवस्थित ट्रस्ट गठित किया गया और व्यवस्थित रूप से इसका एक स्वतंत्र कार्यालय बनाया गया है । समाज की विधवा-त्यक्ताओं, युवकों, वृद्धों, महिलाओं-पुरुषों आदि सभी वर्ग को सिलाई मशीन, कपडा, खाखरा-पापड बनाने, आदि अनेक प्रकार का उद्योग उनकी आवश्यकता तथा इच्छानुसार कराया जाय । तथा नोकरी की इच्छावालों को नोकरी विभाग में भी नियुक्त कराया जाता है । मात्र २००-५०० की रकम देकर जान छुडाने की नीति न अपनाते हुए. एक परिवार को पूर्णरूप से दत्तक लेकर उस परिवार को पूर्ण रूप से स्थायी-स्थिर बनाने की योजना रखी है।
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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