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________________ पाँचवाँ अनुत्तर सर्वार्थसिद्ध विमान १ लाख योजन के विस्तार वाला है । जैसी हमारी जंबूद्वीप की समग्र पृथ्वी १ लाख योजन विस्तार वाली है ठीक वैसी ही सर्वार्थ सिद्ध की भी माप-प्रमाण में १ लाख योजन विस्तार वाली है । अन्य देवलोकों के देवताओं की अपेक्षा अनुत्तर विमानों में देवताओं की संख्या काफी कम होती है। उनमें भी जो सर्वोपरि सर्वश्रेष्ठ सर्वार्थसिद्ध विमान में देवताओं की संख्या सबसे कम है । अनुत्तरवासी देवता सभी सम्यग्दृष्टि श्रद्धासम्पन्न होते हैं। ये आत्माएँ अत्यन्त ज्यादा सर्वोत्कृष्ट धर्माराधना पुण्योपार्जन करके आए हुए देवता हैं । जिसमें उत्कृष्ट कक्षा की ध्यान साधना, तपश्चर्या ब्रह्मचर्यादि का पालन, व्रत-महाव्रतों की पालना करके परिणाम स्वरूप यहाँ आए हैं । ये सभी मोक्षगामी जीव हैं । बस, अब यहाँ से मुत्यु (च्यवन पश्चात) पाकर सीधे ही महाविदेहादि उत्कृष्ट धर्मक्षेत्र में जाकर-जन्म लेकर... अल्पायु में दीक्षा ग्रहण करके.. आराधना-तपश्चर्या उत्कृष्ट कक्षा की करके कर्मक्षय करके केवलज्ञानादि प्राप्त करके... निर्वाण पद-मोक्ष को प्राप्त करते हैं । अतः इनको एकावतारी कहे जाते हैं । अर्थात सिर्फ १ जन्म.. करके मोक्ष में जानेवाले होते हैं। ___ . अनुत्तरवासियों की सुख संपत्ति-वैभव का तो वर्णन करना भी मुश्किल है। ये बिल्कुल सिद्धशिला की इषत्प्राग्भारा पृथ्वी के समीप ही रहते हैं । इनके विमान वहाँ पास में ही हैं । लेकिन देवभव हैं । अतः सीधे देवगति से मोक्ष में जा नहीं सकते हैं । मनुष्यभव की इनके लिए आवश्यकता रहती है। अतः वहाँ से मनुष्य गति में आकर १ भव करके उसी भव में मोक्ष में जाते हैं । और मोक्ष में जाने के लिए चारित्र-सर्वविरति ग्रहण करना आवश्यक है । अतः चारित्र के लिए भी मनुष्य गति में आने के सिवाय दूसरा कोई विकल्प ही नहीं हैं । पाँच अनुत्तरवासी देवताओं के अवधिज्ञान का विषय... सातवीं नरक पृथ्वी तक है । इसलिए इतने ऊँचे लोक के ऊपरी भाग पर रहे हुए ... वहाँ से ही पूरे लोक क्षेत्र को १४ राजलोक के संपूर्ण ब्रह्माण्ड को जानते हैं । देखते हैं । ज्ञान की मस्ती अपूर्व होती ४५ आगमशास्त्रों के ११ अंगसूत्रों में नौवें अंगसूत्र अनुत्तरोपपातिक नामक आगम शास्त्र है, जो एक स्वतंत्र आगम शास्त्र ही अनुत्तर स्वर्ग में उत्पन्न होनेवाले देवताओं का चरित्रात्मक अद्भुत वर्णन खास पढने लायक है। ___ऐसा देवों की अजीब दुनिया का अद्भुत वर्णन है । मात्र सार-सार संक्षिप्त वर्णन यहाँ प्रस्तुत किया है। समस्त लोक स्वरूप ब्रह्माण्ड में सर्व जीवों का वर्णन यहाँ किया गया है। इससे समस्त जीव सृष्टि का ख्याल आ सके। समस्त लोक में...शाश्वत स्वरूप संसार २२५
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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