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के जैसे होते हैं । वैसी जिम्मेदारी संभालते हैं । ४) पारिषद्य-जो मित्रस्थान पर रहनेवाले देवता होते हैं । सलाहकार एवं परामर्शदाता का काम करते हैं । ५) आत्मरक्षक-इन्द्र के खास अंगरक्षक Bodyguards होते हैं । ६) लोकपाल- जो Watchman चोकियात के जैसा कार्य करनेवाले होते हैं । ७) अनीक-सैन्य और सेनाधिपति के स्थान पर रहनेवाले अनीक प्रकार के देवता कहलाते हैं। ८) प्रकीर्णक-देवलोक के समस्त सर्व सामान्य देवता जो हमारे यहाँ नागरिक को, देशवासियों को कहते हैं वैसे ९)
आभियोगिक-महानगरपालिका में जैसे कर्मचारी नोकर-चाकर होते हैं वैसे ये भी नोकर दास की कक्षा के देवताओं का प्रकार है । आखिर इतनी बडी दुनिया है तो वहाँ भी नोकर-चाकर-मजदूर आदि सब प्रकार के देवताओं की आवश्यकता तो पडती ही है । १०) किल्बिषिक- जैसे मनुष्य क्षेत्र में यहाँ पर हरिजन-भंगी चमार आदि होते हैं। वैसे ही देवलोक में भी चण्डाल जैसे अस्पृश्य देवताओं को किल्बिषिक नाम की संज्ञा दी गई है । ये १ ले २ रे तथा ३ रे और ४ थे, तथा लांतक छट्टे देवलोक कल्प के नीचे रहनेवाले देवता हैं । इनको वहाँ देवलोक में भी अस्पृश्य की तरह गिनकर उनका तिरस्कार करते हैं । इनके भी ३ पल्योपम, ३ और १३ सागरोपम का आयुष्य काल होता है।
इन १० प्रकार के देवताओं की जैसी व्यवस्था वैमानिक देवलोक में है । उससे कुछ कम प्रकार की व्यवस्था व्यन्तर एवं ज्योतिषी देवताओं में भी है। त्रायस्त्रिंश-लोकपालवा व्यन्तर-ज्योतिष्काः॥ ४-५॥ त्रायस्त्रिंश अर्थात् राजपुरोहित मंत्री आदि और लोकपाल अर्थात् कोतवाल या रक्षा करनेवाले चौकियात जैसे इन दो प्रकार के देवताओं के बिना शेष ८ प्रकार की व्यवस्था व्यन्तर और ज्योतिषी देवताओं में है । वहाँ इतने से ही काम चलता है ।
इन्द्र वर्णन- देवलोक में राजा-राष्ट्रपति स्थानीय मालिक जैसे मुख्य देवताओं को इन्द्र कहते हैं। इन्द्र सम्यग्दृष्टि श्रद्धा सम्पन्न होते हैं। सबसे ज्यादा अतुल बलशाली-शक्तीशाली इन्द्र होते हैं । इन्द्र ही वहाँ के अर्थात् अपने-अपने विमानों में मुख्य राजा होते हैं। उनकी ही आज्ञा में सबको चलना पडता है। मुख्य ६४ इन्द्रों की गिनती प्रसिद्ध है । भवनपति के २० + व्यन्तर के १६ + वाणव्यंतर के १६ + ज्योतिष्क के २ + वैमानिकों के १० = इस तरह कुल मिलाकर ६४ इन्द्र होते हैं । वैमानिकों में प्रथम के ८ देवलोक के एक-एक के हिसाब से ८ इन्द्र और ९ वें तथा १० वें देवलोक तथा ११ वें और १२ वें इन दोनों के एक–एक ऐसे २ इस तरह ८ + २ = १० इन्द्र होते हैं । ९ ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर ये कल्पातीत हैं । अतः वहाँ इन्द्र-सामानिक आदि
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आध्यात्मिक विकास यात्रा