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वैमानिक में ४ थे ग्रैवेयक देवलोक में
उत्कृष्ट २६ सागरोपम और जघन्य २५ सागरोपम वैमानिक में ५ वे ग्रैवेयक देवलोक में
उत्कृष्ट २७ सागरोपम और जघन्य २६ सागरोपम वैमानिक में ६ ठे ग्रैवेयक देवलोक में -
उत्कृष्ट २८ सागरोपम और जघन्य २७ सागरोपम वैमानिक में ७ वे ग्रैवेयक देवलोक में -
उत्कृष्ट २९ सागरोपम और जघन्य २८ सागरोपम वैमानिक में ८ वे ग्रैवेयक देवलोक में -
उत्कृष्ट ३० सागरोपम और जघन्य २९ सागरोपम वैमानिक में ९ वे ग्रैवेयक देवलोक में -
उत्कृष्ट ३१ सागरोपम और जघन्य ३० सागरोपम अनुत्तर के विजयादि ४ देवलोक में -
उत्कृष्ट ३२ सागरोपम और जघन्य ३१ सागरोपम सर्वार्थसिद्धदेवलोक में -
उत्कृष्ट ३३ सागरोपम और जघन्य नहीं। इस तरह देवताओं की भिन्न-भिन्न आयुष्य की काल स्थिति शास्त्रों में बताई गई हैं । यह शाश्वत स्थिति है । उन उन देवलोक में आनेवाले देवताओं की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति उतनी ही होती है । देवों की दुनिया की यह आयु मर्यादा भिन्न भिन्न प्रकार की होती
प्रभाव-देवताओं में शिक्षा करने की शक्ती, किसी पर अनुग्रह अनुकंपा करने की शक्ती, वैक्रिय शरीर की रचना करने की शक्ती, एक दूसरे पर युद्ध करने की शक्ती आदि अनेक प्रकार की शक्ती के प्रभाव के विषय में देवताओं की जातियो में जैसे जैसे नीचे से ऊपर जाय वैसे वैसे प्रभाव-शक्ती क्रमशः बढती ही जाती है । अनेक गुना प्रभाव बढता है। इसलिए ऊपर-ऊपर के देवता ज्यादा शक्तीशाली महाबलशाली–महान प्रभाववाले होते हैं । ठीक इससे विपरीत नीचे के देवता कम–कम प्रभाव शक्ती वाले होते हैं। जैसे जैसे ऊपर-ऊपर के देवताओं के जीवन के बारे में देखें, सोचें, तो शास्त्रकार महापुरुष कहते हैं कि... ऊपर-ऊपर के देवलोक के देवताओं का मान-अभिमान काफी कम होता है, मन की क्लिष्ट भावनाएँ काफी कम कम होती जाती हैं, अतः ऊपर-ऊपर घाले देवता बहुत ज्यादा प्रवृत्ति भी नहीं करते हैं।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा .