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________________ देवलोक में प्रत्येक में १८० प्रतिमाएँ . . . हैं। इस तरह कुल मिलाकर१५२,९४,४४,७६० (एक सौ बावन करोड, चौराण्वे लाख, चौआलीस हजार सात सौ साठ) इतनी शाश्वत मूर्तियाँ प्रतिमाएँ हैं। ये सभी मंदिर और मूर्तियाँ शाश्वत-नित्य (Permanent) यह बात तो हुई ऊपर के वैमानिक देवलोक की । इसी तरह भवनपति की देव जाती के जो आवास और भवन हैं उनमें भी कई जिन मंदिर हैं। उनकी संख्या शास्त्रों में ७,७२,००,००० (सात करोड और बहत्तर लाख) बताई है। उन प्रत्येक जिन मंदिरों में १८० जिन मूर्तियाँ हैं। इस तरह प्रत्येक मंदिर में १८० के हिसाब से कुल मिलाकर १३८९६०००००० तेरह सौ नव्यासी करोड और साठ लाख इतनी कुल जिनेश्वर भगवंतों की मूर्तियाँ हैं । इसी तरह व्यन्तर निकाय और ज्योतिषी देवों के विमानों में भी अनेक जिनमंदिर तथा मूर्तियाँ है । लेकिन इस सकल तीर्थवंदना के सूत्र पाठ में वह संख्या गिनाई नहीं है। लेकिन चोमासी देववंदन में शाश्वता-अशाश्वता चैत्यवंदन में पद्मविजयजी महाराज कह रहे हैं कि असंख्यात व्यंतर तणा नगर नामे । नमो. ॥२॥ असंख्यात तिहाँ चैत्य तेम ज्योतिषीए। बिंब एकशत एंशी भाख्या ऋषिए ।। . व्यंतर जाति के निवासों का जो वर्णन पहले कर आए हैं उसमें असंख्य नगरादि हैं उनमें असंख्य जिन चैत्य हैं । इसी तरह ज्योतिष्क मण्डल के देव विमानों में भी असंख्य जिन चैत्यादि हैं । वहाँ भी शाश्वत प्रतिमाएँ १८० के हिसाब से गिनी जाती हैं । शाश्वत जिन नामों में १) ऋषभ, २) चन्द्रानन, ३) वारिषेण, तथा ४) वर्धमान ये चार नाम शाश्वत हैं । इन चारों प्रकार के नाम सदाकाल होते हैं । अतः ये चारों नाम शाश्वत हैं। इसी तरह तिर्छा लोक में भी... जंबुद्वीप, धातकी खंड और पुष्करार्ध द्वीप ... आदि ढाई द्वीपों में भी अनेक पर्वतों तथा क्षेत्रों में अनेक जिन मंदिर हैं। तथा अनेक प्रतिमाजी भी हैं । वर्तमान में हमारे भारत देश में जो अनेक प्राचीन ऐसिहासिक तीर्थ आदि हैं, उनकी संख्या भी काफी विशाल है । और उन सभी तीर्थों में रही हुई मूर्तियों की संख्या भी काफी विस्तृत है । इनमें शाश्वत तथा अशाश्वत सब प्रकार की प्रतिमाजी गिनी गई है। उदाहरणार्थ....श्री शत्रुजय (पालीताणा) सम्मेत शिखरजी आदि अनेक तीर्थ हैं...और ऐसे अनेक तीर्थों में अनेक जिन प्रतिमाएँ हैं। संसार २०९
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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