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देवलोक में शाश्वत जैन मंदिर तथा मूर्तियाँ
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देवगति की चारों निकायों - जातियों में जितने भी भवन, आवास तथा विमानादि हैं उन सब में शाश्वत जिन चैत्य अर्थात् जैन मंदिर हैं । कई ऊँची कक्षा के श्रद्धावंत - सम्यक् दृष्टि देवता जैन मंदिरों में जिनेश्वर भगवंतों की मूर्तियों - प्रतिमाओं की पूजा - भक्ति - दर्शनादि नित्य करते हैं । हम प्रतिदिन जो. राई प्रतिक्रमण करते हैं उसमें “सकलतीर्थवंदना” का जो सूत्र पाठ बोलते हैं उसमें मंदिर और मूर्तियों की संख्या बोलते हुए वंदन करते हैं । वह निम्न प्रकार है
क्रम देवलोक का नाम
१. पहले स्वर्ग - सौधर्म देवलोक में
२.
दूसरे स्वर्ग - ईशान
३.
४.
तीसरे स्वर्ग - सनतकुमार चौथे स्वर्ग - माहेन्द्र पाँचवे स्वर्ग - ब्रह्मलोक ६. छट्ठे स्वर्ग-लांतक
५.
७.
सातवें स्वर्ग - महाशुक्र आठवें स्वर्ग- - सहस्रार
८.
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९.
नौंवे स्वर्ग-आनत १०. दसवें स्वर्ग - प्राणत ११. ग्यारहवें स्वर्ग - आरण १२. बारहवें स्वर्ग - अच्युत ग्रैवेयक देवलोक पाँच अनुत्तर विमान के पाँचों देवलोक में
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२०८
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29 22
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33 39
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मंदिर संख्या
३२ लाख
२८ लाख
१२ लाख
६० लाख
४ लाख
५० हजार
४० हजार
६ हजार
४००
४००
३००
३००
३१८
५
मूर्ति संख्या
५७,६०,००,०००
५०,४०,००,०००
२१,६०,००,०००
१४,४०,००,०००
७,२०,००,०००
९०,००,०००
६००
इन १२ देवलोक + ९‘ग्रैवेयक + तथा ५ अनुत्तर ऐसे कुल १६ देवलोक के विमानों में कुल मिलाकर ८४९७०२३ (चौराशी लाख सत्याणवे हजार और तेईस इतने जिन भवन जैन मंदिर हैं । इन जिनेश्वर भगवंतों के जैन मंदिरों का माप - प्रमाण भी आगम शास्त्रों में बताते हुए कहा है कि... ये मंदिर... १०० योजन लम्बे, ५० योजन ऊँचे और ७२ योजन चौडे विस्तारवाले विशाल हैं, और मात्र मंदिर ही नहीं यहाँ पर मूर्तियों की संख्या भी गिनाई है। इन चैत्यों (मंदिरों) में सभा सहित १८० जिन बिम्ब अर्थात् प्रतिमाएं - मूर्तियाँ हैं । उपरोक्त १२ देवलोक + ग्रैवेयक तथा ५ अनुत्तर इन सब
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आध्यात्मिक विकास यात्रा
७२,००,०००
१०,८०,०००
७२,०००
७२,०००
५४,०००
५४,०००
३८,१६०