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________________ अब समस्त शाश्वत जिन मंदिरों तथा मूर्तियों की कुल संख्या कहते हैं ऊर्ध्व-अधो-तिर्खा लोके थइ कोडि पन्नरसे जाणोजी। ऊपर कोडि बैतालिस प्रणमो, अडवन्न लख मन आणोजी। छत्तीस सहस अस्सी ते ऊपरे, बिंब तणो परिमाणोजी। .....असंख्यात व्यंतर ज्योतिषीमां प्रणमुं ते सुविहाणोजी ।। ऊर्ध्व अधो और तिर्छा लोक इन तीनों लोकों में कुल मिलाकर १५४२५८३६०८० इतनी शाश्वत प्रतिमाएं मूर्तियाँ हैं । व्यन्तर और ज्योतिष देवलोक में तो असंख्य है । अतः उनकी गिनती इसमें नहीं है। तथा हमारे यहाँ जो अशाश्वत जिनालय तथा प्रतिमाएँ हैं, उनकी गिनती भी इसमें नहीं है । तथा ढाई द्वीप के बाहर नौंवा जो नंदीश्वर द्वीप है वहाँ जिन मंदिर-मूर्तियाँ हैं । देवता वहाँ जाते हैं और अष्टान्हिका महोत्सव आदि पूर्वक प्रभु भक्ति पूजा-पाठ आदि सब करते हैं। देवलोक की चारों निकाय में दोनों प्रकार के देवता हैं। मिथ्यात्वी अधर्मी और सम्यग दृष्टि-धर्मी । सम्यक्दृष्टि धर्मिष्ठ प्रकार के देवी-देवता जिस प्रकार की धर्माराधना करते हैं उसमें मुख्य है- जिनदर्शन, पूजा-पाठ, भक्ती, महोत्सवादि । क्योंकि स्वर्ग पाताल में न तो देवाधिदेव तीर्थंकर भगवान हैं, न हुए हैं, और न ही होते हैं । तथा कभी होंगे भी नहीं । वहाँ संदेह से कोई भी तीर्थंकर नहीं हुए हैं । और न ही कोई साधुसंत मुनि हुए हैं। भगवान और गुरु तो यहाँ हमारी पृथ्वी पर होते हैं। मनुष्यलोक में होते हैं। इसलिए भगवान और गुरु के अभाव में धर्म का उपदेश भी वहाँ नहीं है । अतः वहाँ धर्म भी क्या होगा? और कैसा होगा? व्रत-विरति और पच्चक्खाण का धर्म तो वहाँ संभव ही नहीं है । आयंबिल-उपवास तथा सामायिक प्रतिक्रमण–पौषधादि तो वहाँ संभव ही नहीं हैं, क्योंकि देवता अविरति के उदयवाले होते हैं । अतः बचा एक मात्र श्रद्धा भक्ती का धर्म । उसमें देवता-दर्शन-पूजा–भक्ती करते हैं । तथा प्रभु के समवसरण में आते हैं, देशना श्रवण करते हैं। नंदीश्वर द्वीप जाते हैं । वहाँ अष्टान्हिका भक्ती महोत्सव करते हैं। तथा मेरु पर्वत पर परमात्मा के जन्माभिषेक का महोत्सव मनाते हैं । पाँचों कल्याणक मनाते हैं। तथा कल्याणक तीर्थों की यात्रा आदि करके लम्बे आयुष्य का काल निर्गमन करते हैं। २१० आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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