________________
चक्र, खड्गादि विचित्र प्रकार के विमान भी होते हैं । आवलिकागत विमानों का परस्पर अन्तर असंख्यात योजन का होता है । जबकि पुष्पावकीर्ण विमानों का अन्तर सिर्फ संख्यात योजन का होता है । तथा असंख्यात योजन का भी होता है ।
T
दक्षिण दिशा में रहे हुए आवलिकागत विमान दक्षिणेन्द्रों के होते हैं, उसी तरह उत्तरदिशा में आवलिकागत विमान उत्तरेन्द्रों के होते हैं । पूर्वपश्चिम की पंक्तियाँ सामान्यतः जानी जाती है । बीच-बीच में जो वृत्त (गोल) विमान आते हैं वे दक्षिणेन्द्रों के जाने जाते हैं । अत्यन्त सुरभि = सुगंधवाले, सुखकारी स्पर्श वाले, रमणीय, जगत्स्वभावानुसारी स्वयंप्रभा तेज करनेवाले, निरंतर प्रकाश फैलाने वाले ये विमान होते हैं । आवलिका प्रविष्ट विमानों के चारों तरफ किल्लों की तरह गढ होता है । और चतुष्कोण विमानों के चारों तरफ वेदिका होती है । ये विमान पृथ्वियाँ स्फटिकमय देदीप्यमान हैं । इनके आधार के रूप में घनोदधि, घनवात तथा आकाशादि के आधार पर स्थित है । पहले दो स्वर्गसौधर्म तथा ईशान देवलोक के विमान घनोदधि के आधार पर रहे हुए हैं। ऊपर के ३, ४, ५ अर्थात् सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक नामक स्वर्ग के विमान... घनवात तनवात के आधार पर हैं । तथा आगे के ६, ७, और ८ वाँ स्वर्ग = अर्थात् लांतक शुक्र तथा सहस्रार इन तीनों स्वर्ग के विमान प्रथम घनोदधि और फिर ऊपर घनवात इन दोनों के आधार पर आधारित है । और आगे के आनत - प्राणतादि के सभी स्वर्ग के देवलोक के विमान ... आकाशाधारित हैं ।
स्वर्गीय विमानों के माप प्रमाण
इन देवलोक के विमानों के माप - प्रमाण आदि के विषय में कहते हैं कि एक एक द्वीप से भी काफी ज्यादा बडे विशाल होते हैं। पहले २ देवलोक के विमानों की पृथ्वियों का पिण्ड प्रमाण अर्थात् जमीन की मोटाई २७०० योजन प्रमाण है । तथा ऊँचाई ५०० योजन प्रमाण है ।
२०६
३ तथा ४ थे स्वर्ग के विमान की पृथ्वी की मोटाई -
―――
२६०० यो. तथा ऊँचाई ६०० यो.
५ तथा ६ ठे स्वर्ग के विमान की पृथ्वी की मोटाई -
—
२५०० यो. तथा ऊँचाई ७०० यो.
७ तथा ८ वें स्वर्ग के विमान की पृथ्वी की मोटाई -
-
२४०० यो. तथा ऊँचाई ८०० यो.
आध्यात्मिक विकास यात्रा