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________________ ० ४०० ० ३०० १) प्रथम सौधर्म देवलोक में विमान संख्या- ३२ लाख २) दूसरे-ईशानं देवलोक में विमान संख्या - २८ लाख ३) तीसरे-सनत् कुमार में विमान संख्या - १२ लाख ४) चौथे-माहेन्द्र में विमान संख्या - ८ लाख ५) पाँचवे-ब्रह्मदेवलोक में विमान संख्या - ४ लाख ६) लांतक देवलोक में विमान संख्या - ५० हजार ७) शुक्र में विमान संख्या - ४० हजार ८) सहस्रारमें विमान संख्या - ६ हजार ९) आनत में विमान संख्या ४०० १०) प्राणतमें विमान संख्या - ११) आरणमें विमान संख्या ३०० १२) अच्चुत में विमान संख्या - १) प्रथम-सुदर्शन ग्रैवेयक में विमान संख्या - १११ २) द्वितीय-सुप्तभद्र में विमान संख्या - ३) तीसरे–मनोरम में विमान संख्या - ४) चौथे-सर्वभद्र में विमान संख्या - १०७ ५) पाँचवे-सुविशाल में विमान संख्या - १०७ ६) छठे-सुमनस में विमान संख्या - १०७ ७) सातवें सौमनस में विमान संख्या - १०० ८) आठवें-प्रियंकर में विमान संख्या - १०० ९) नौंवे-आदित्य में विमान संख्या - १०० पाँचो अनुत्तर देवलोक में विमान संख्या - ५ १२+९+ ५ = इन २६ देवलोकों के विमानों की कुल संख्या ८४,९७,०२३ है। इतने विमानों में भी ६२ इन्द्रक विमान हैं । इन कल्पगत विमानों के ऊपर उन उन निकाय के अन्दर का वहाँ आधिपत्य होता है । पुष्पावकीर्ण और आवलिकागत श्रेणी संख्या में ऊपर-ऊपर प्रतरों पर विमान है। इन विमानों के भी भिन्न भिन्न आकार विशेष होते हैं। इन्द्रों के विमान गोलाकार होते हैं । इनके चारों तरफ चारों दिशा में- चार पंक्तियों में प्रथम त्रिकोणाकार विमान होते हैं फिर चौकोन आकार के होते हैं। इस तरह ऊपर-ऊपर पंक्तिबद्ध विमानों की स्थिति है । पुष्पावकीर्ण विमानों में तो स्वस्तिक, नन्दावर्त, श्रीवत्स, १११ संसार २०५
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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