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________________ ही रहते हैं। अति गतिशीलता के कारण चर ज्योतिषी कहलाते हैं। और ढाई द्वीप के अन्दर के सभी सूर्य चन्द्रादि गोलाकार भ्रमण करते रहते हैं । परन्तु.... ढाई द्वीप के बाहर के सभी ज्योतिषी देवता स्थिर होते हैं । वे नहीं घूमते हैं। ये देवगति के ज्योतिष निकाय के देवता हैं । अतः यहाँ पर इनकी भी देव दुनिया कैसी है इसका वर्णन प्राधान्य रूप से करना अवसर प्राप्त है । (खगोलिक वर्णन पहले कर आए हैं । वहाँ से पुनः विशेष जानकारी प्राप्त करके फिर यहाँ आगे पढ़ें ।) . C ART MACE ज्योतिष्का पंच चन्द्रार्कग्रहनक्षत्रतारकाः। द्विधा स्थिराश्चराति दशभेदा भवन्ति ते॥ लोकप्रकाश में ज्योतिषी देवता मुख्य पाँच प्रकार के बताए गए हैं१) सूर्य, २) चन्द्र, ३) ग्रह, ४) नक्षत्र, और ५) तारा । ये पाँचो स्थिर और अस्थिर अर्थात् चर और अचर भेद से पुनः १० प्रकार के हैं। ५ चर + ५ अचर = १० । ढाई द्वीप अन्तर्गत सभी चर ज्योतिषी हैं जो निरन्तर भ्रमणशील है। और ढाई द्वीप के बाहर के असंख्य द्वीप-समुद्रों पर स्थित सभी सूर्यचन्द्रादि स्थिर-अचर कक्षा के हैं। तत्कृतकालविभागः सूर्य-चन्द्रादि काल की व्यवस्था में निमित्त कारण बनते हैं। ज्योतिषी देवताओं के परिवारों की व्यवस्था है । यहाँ देवता भी हैं और देवियाँ भी हैं। ये कायप्रविचारी अर्थात् मनुष्य की तरह मैथुन-रतिक्रीडा आदि द्वारा भोग भोगनेवाले हैं । परन्तु वहाँ गर्भादि द्वारा जीवों की उत्पत्ति-जन्मादि नहीं होते हैं । वहाँ जन्मादि की सारी व्यवस्था ही अलग प्रकार की है। वैसे देवताओं का जन्म उपपात जन्म कहलाता २०० आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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