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है । अर्थात् पुष्पशय्या पर जन्म लेकर युवराज की तरह खडे हो जाते हैं । बस, इसी प्रकार वहाँ जन्म होता है। ज्योतिषी देव निकाय में प्रतिदिन वहाँ पर मनुष्य और तिर्यंच गति के जीव आकर जन्म लेते ही रहते हैं। ज्यादा से ज्यादा २४ मुहूर्त काल मात्र का ही विरहकाल-विलम्ब हो सकता है। और वहाँ से मरकर (च्युत होकर) वापिस अन्यत्र जानेवाले भी संख्यात–असंख्यात होते हैं । मरने का उत्कृष्ट अनन्तर भी १२ अंतर्मुहूर्त का है । और एक साथ १, २, ३, ५, और ज्यादा हजारों लाखों तथा संख्यात–असंख्यात भी जन्मते-मरते हैं । इनकी भवस्थिति एक ही जन्म की होती है । देवता देवगति में एक साथ एक ही जन्म कर सकते हैं, ज्यादा नहीं । एक ही जन्म पूर्ण होने के बाद अवश्य मरकर तिर्यंच या मनुष्य गति में जाते हैं। इनके अपने शरीर की ऊँचाई ज्यादा से ज्यादा ७ हाथ प्रमाण ही होती है । वैक्रिय शरीर की रचना करते समय कितना भी लम्बा बना सकते हैं। सूर्य-चन्द्र प्रकाश संबंधि विचार
सूर्य-चन्द्र ज्योतिषी देवता हैं। ज्योति शब्द का अर्थ ही है- प्रकाशपुंज। प्रकाशमय देदीप्यमान ज्योतिरूप दीप्तमान इनके शरीर हैं । सूर्य-चन्द्र के जो विमान है उनका प्रकाश भी काफी ज्यादा है। सूर्य के काफी बडे विशाल विमान पृथ्वीकायमय पार्थिव है। विशेषता यह है कि... इन पृथ्वीकाय के जीवों का आतप नाम कर्म की कर्मप्रकृति का उदय है । इस आतप नामकर्म के कारण ऐसे पृथ्वीवाले पार्थिव जीवों के देह का प्रकाश बडा ही उष्ण होता है । जो सर्वत्र फैलता है । कर्मग्रन्थ में कहा है किरविबिंबे उ जियंगं तावजुयं आयवाउ न उजलेण। जमुसिण फासस्स तहिं लोहियवण्णस्स उदओत्ति ।। सूर्य का जो यह बिंब दिखाई दे रहा है उसके विमान में आतप नाम कर्म के उदयवाले पृथ्वीकायिक जीव हैं । आतप नाम कर्म की इस विशिष्ट कक्षा की कर्म प्रकृति का अर्थ यह है कि... पृथ्वीकाय के एकेन्द्रिय जीवों का पार्थिव शरीर जो स्वभाव से अपने आप में अनुष्ण हो, अर्थात् शीत हो फिर भी दूर उष्ण प्रकाशरूप आतप को करनेवाला होता है। यह सिर्फ सूर्य विमान में रहे हुए एकेन्द्रिय पृथ्वीकायिक जीवों की ही विशेषता है । बस उनके सिवाय अन्यत्र कहीं भी नहीं होता है । शायद आप शंका करेंगे कि अग्नि का भी उष्ण स्पर्श होता है। गर्म प्रकाश होता है। लेकिन अपने आप में शीत नहीं है । और ये पृथ्वीकायिक भी नहीं है । अतः इस प्रकार की आतप नाम कर्म की विशिष्ट नाम कर्म की प्रकृति एकमात्र सिर्फ पृथ्वीकायिक जीवों में ही है और वे भी एकमात्र सूर्यविमान में रहे हुए में ही है । अतः हमें जो सूर्य का ताप-प्रकाश (धूप) जो गरम लगता
संसार
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