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________________ जहाँ मनुष्य गति में माँ के गर्भ में आकर जीव २ घडी के अंतर्मुहूर्त काल में आयुष्य समाप्त कर मृत्यु पाकर चला जाय ठीक इसी २ घडी की तुलना में नरक में कम से कम आयुष्य १०००० वर्ष का है । इतना लम्बा एक जीवन है । पूर्वकृत भयंकर पाप कर्मों की भारी सजा भुगतने के लिए जीवों को इतना लम्बा काल नरक में बिताना पडता है । नारकी जीव सभी संज्ञी समनस्क मनुष्यों के जैसे ही होते हैं ।सभी पंचेन्द्रिय हैं। और सभी नारकी जीव वहाँ नपुंसक वेदवाले होते हैं । विषयवासना की कामसंज्ञा बडी तीव्रतम होती है । इसी तरह आहारादि की क्षुधा भी बडी भारी होती है। ___ सात नरक में से १, २ और तीसरी इन तीन नरकों में परमाधामी होते हैं । ये वैसे ४ प्रकार के देवताओं में से भवनपति की जाति के देवता ही हैं । १५ प्रकार के परमाधामी बडे ही क्रूर स्वभाव के और परम अधार्मिक वृत्तिवाले होते हैं । वहाँ की भूमि के नारकी जीवों को मारने पीटने में ही उनको बहुत मजा आती है । अतः किसी भी नारकी जीव को तो वे देखते ही नहीं छोडते हैं। उनका अपना शरीर बड़ा ही खराब कुरूप राक्षसी होता है। भयानक डरावना रूप वे बनाते हैं और नारकियों को डराते हैं । नारकियों को करवत से काटना, अग्नि में शेकना, कढाई में तलना, कपडे धोने की तरह आस्फालित करना, रस्सी से बांधना, गरम तपे हुए लोहे से लगाना, आंखें फोडना, नाक कानादि अंगोपांग काटना, उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देना, छेदन-भेदन करना, उल्टे मुँह बांध कर लटकाना, इत्यादि अनेक तरह की, सेंकडों प्रकार की पीडा पहुँचाने-देने का काम ये परमाधामी करते हैं । इससे वे भी भारी पापकर्म उपार्जन करते हैं और मृत्यु के बाद उनकी भी अण्डगोलिक मनुष्य बनने की नौबत आती है । फिर भी वे भी असह्य वेदना पाते हैं। __ वैसे नरक के नारकी जीव स्वयं ही अपने पूर्व जन्मों में किए हुए भारी पापकर्मों के उदय से दुःख–वेदना भारी सजा भुगतते ही हैं। लेकिन परमाधामी उसमें निमित्त बनते हैं । यहाँ मनुष्य-तिर्यंच के जन्म में काफी लम्बे काल तक सेंकडों प्रकार के पाप कर्म वे THRIMA संसार १९१
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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