________________
स्वयं ही उत्पन्न हो जाते हैं । उन्हें संमूर्छिम जन्म कहते हैं । तेइन्द्रिय चिंटी आदि के जीव भी स्वजाति के जीवों के मल-मूत्र-विष्ठा आदि में जन्म ले लेते हैं । उस जन्म को संमूछिम जन्म कहते हैं । ४ इन्द्रियवाले जीव लाल-मल आदि में भी उत्पन्न हो जाते हैं । पंचेन्द्रिय जीवों में भी जलचर मछली आदि संमूछिम और गर्भज दोनों प्रकार के होते हैं। भुजपरिसर्प और उरपरिसर्प जीव गर्भ से भी जन्म लेते हैं, और संमूर्छिम जन्म भी लेते हैं । पक्षियों में भी स्वजाति के मृत कलेवरों में से भी उत्पत्ति होती है । इसी तरह मनुष्यों में भी १४ प्रकार के अशुचि स्थानों में रस-रुधिर आदि में भी उत्पन्न होते हैं । अतः मनुष्यों की उत्पत्ति गर्भज तथा संमूर्छिम दोनों प्रकार से होती है।
यह उत्पत्ति स्थान ही योनि कहलाती है। गति की दृष्टि से ये सभी तिर्यंच गति के जीव कहलाते हैं। एकेन्द्रिय २, ३, और ४ इंद्रियवाले विकलेन्द्रिय तथा जलचरादि पंचेन्द्रिय सभी तिर्यंच गति के जीव कहलाते हैं । इनमें भेदों की विवक्षा इस प्रकार हैंपृथ्वी-पानी–अग्नि-वायु-वनस्पति इन ५ स्थावरों के कुल २२ प्रकार २, ३, और ४ इन्द्रिय वाले विकलेन्द्रिय जीवों के कुल ६ प्रकार पंचेन्द्रिय जलचर-खेचर-स्थलचर-आदि तिर्यंचो के कुल २० प्रकार
इस तरह तिर्यंच गति के कुल मिलाकर४८ भेद होते हैं। मनुष्यों के भेद
कम्मा-ऽकम्मग-भूमि-अंतरदीवा-मणुस्सा य। ' १५ कर्म भूमि + ३० अकर्म भूमि + और ५६ अंतर्वीप में उत्पन्न होनेवाले मनुष्य
जो अढाई द्वीप में रहनेवाले हैं। ऐसे १०१ प्रकार के मनुष्य होते हैं। जंबूद्वीप, धातकी खण्ड और पुष्करार्ध ये २१/२ द्वीप हैं । बस, इतना ही सिर्फ मनुष्य क्षेत्र है । इस २१/२ द्वीप में १५ कर्मभूमियाँ हैं । जहाँ असि, मसि और कृषि का व्यापार होता है। जहाँ धर्म-मोक्ष सुलभ है ऐसी कर्मभूमियाँ १५ हैं । ५ भरत क्षेत्र, ५ ऐरावत क्षेत्र,
४ऐ.
३.ऐ.
| २ऐ.
५म.४ म.
१म.
२ म./३म
१भ..
२भ.
३भ.
४भ.
१८८
आध्यात्मिक विकास यात्रा