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________________ सुव्यवस्थित ऐसा ही है। अनादि अनन्त काल पहले भी जीव इन पाँचों इन्द्रियोंवाले ही थे... इनमें ही विभक्त थे। अतः इन्द्रियों की दृष्टि से जीव पाँच ही प्रकार के हैं । यही क्रम आगे भविष्य में भी अनन्त काल तक ऐसे ही रहेगा। भविष्य में अनन्तकाल के बाद भी पाँच की छः इन्द्रियाँ तो होती ही नहीं है और होगी भी नहीं। इस तरह इन्द्रियों की प्राप्ति में अन्तिम विकास पाँचवी इन्द्रिय तक ही सीमित है । पाँचों इन्द्रियोंवाले जीव भूतकाल में अनन्तकाल से थे। उस अनन्त काल की शुरुआत आदि न होने से अनादि काल कहा गया है । और आगे भविष्य में अनन्त काल तक भी पाँचों इन्द्रियाँ यही रहेगी। जीव यहाँ तक ही पहुँच पाएगा। पंचेन्द्रिय में ४ विभाग पाँच इन्द्रियों को धारण करनेवाले ४ प्रकार के जीव हैं— १) तिर्यंच, २) नारकी, ३) मनुष्य, और ४) देवता । यहाँ ४ की ही संख्या बताई गई है। पाँच भेद नहीं बताए हैं। बस सिर्फ ४.ही । पाँच इन्द्रियाँ जिन जिन जीवों ने प्राप्त की हैं उनमें ये चार प्रकार के जीव मुख्य हैं । निगोद से एकेन्द्रिय दोइन्द्रिय- तीनइन्द्रिय-चारइन्द्रिय वाले बनता बनता जीव अब आगे पाँच इन्द्रियवाला बनता है । उसमें प्रथम तिर्यंच पशु-पक्षी की अवस्था प्राप्त करता है । अतः पशु-पक्षी में प्रवेश पाता है । तिर्यंच में पशु-पक्षी मुख्य रूप से ३ प्रकार में विभक्त हैं । तिर्यंच पशु पक्षी १ जलचर २ स्थलचर ३ खेचर १ भुजपरिसर्प २ उरपरिसर्प ३ चतुष्पद १) जल में रहनेवाले मछलियाँ आदि जलचर, स्थल-भूमि पर रहनेवाले स्थलचर कहलाते हैं । स्थलचर में, भुजा-हाथ से चलनेवाले चूहा, छिपकली, गिलहरी, बन्दर आदि भुजपरिसर्प कहलाते हैं । और कुछ ऐसे भी प्राणी हैं जिनको हाथ-पैर कुछ भी नहीं होते हैं वे सिर्फ पेट के बल पर ही–पेंट रगडते हुए ही चलते हैं उनमें मुख्य साँप है । और चतुष्पद अर्थात् चार पैरवाले पशु हाथी-घोडा-ऊँट–बैल-बकरी-भैंस-गधा आदि संसार १८५
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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