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________________ - - E इसके पश्चात तेइन्द्रिय से और ऊपर उठते हुए... विकास साधते हुए जीव चउरिन्द्रिय की अवस्था में आते हैं। तीन के बाद चौथी इन्द्रिय चक्षु-आँख मिलती है । जिससे जीव सब केछ देख सकता है। चक्षु का विषय है- रूपरंग को ग्रहण करना। पहली तीन इन्द्रियाँ तो थी ही। उनसे उनके विषयों को जीव ग्रहण करता ही था । अब चौथी चक्ष इन्द्रिय और मिलने से रूप-रंग के विषयों का भी ग्रहण होने लगा। ऐसे जीव भी संसार में अनेक प्रकार के हैं। जिनमें बिच्छु, भौरे, तीड, मक्खी, मच्छर, तितलियाँ, मकडी, आदि अनेक प्रकार के चउरिन्द्रिय जीव हैं। . यह जीव सृष्टि भी बहुत लम्बी-चौडी है। स्वकृत कर्मानुसार जीव को वैसी गति–जाति और शरीर धारण करने पड़ते हैं । अब निगोद से आगे बढते-बढते जीव चउरिन्द्रिय तक विकास साधता हुआ यहाँ तक तो आ गया। अभी भी आगे बढ़ना तो अवशिष्ट है। पंचेन्द्रिय की कक्षा में प्रवेश चउरिन्द्रिय की कक्षा से आगे बढता हुआ जीव पंचेन्द्रिय में आता है। पांचवी श्रवणेन्द्रिय की प्राप्ति होती है । श्रवण करना अर्थात् सुनना । अतः श्रवणेन्द्रिय के लिए दूसरा शब्द श्रोत्रेन्द्रिय भी है । श्रवण-सुनने का साधनभूत शरीर में अंग – कान है । अतः कर्णेन्द्रिय भी कहते हैं। उसका विषय ध्वनि-शब्द ग्रहण करने का है। क्रम में ऊपर-चढते कान-कर्णेन्द्रिय का अन्तिम नम्बर है । बस, इन्द्रियों की प्राप्ति करने की दिशा में यह अन्तिम इन्द्रिय है । इसके बाद कोई इन्द्रिय नहीं है । जगत में अनादि काल से आज दिन तक सिर्फ पाँच ही इन्द्रियाँ है । पाँच के आगे छट्ठी इन्द्रिय ही नहीं है । अतः जब जब भी जीव इन्द्रियों को प्राप्त करते हए आगे पहुँचते हैं तब इन पाँच इन्द्रियों तक ही आगे बढ़ पाते हैं । संसार में यह भी एक प्रकार का विकास है, शारीरिक विकास है। शरीर इन्द्रियों को धारण करते करते आगे बढे तो अन्त में पाँचवी इन्द्रिय तक ही आगे बढ़ सकता है । यह अन्तिम विकास इन्द्रियों के विषय में है। यह क्रम अनादि काल से १८४ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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