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इन्द्रियों के विकास का क्रम
चित्र में दर्शाए अनुसार ये पाँच इन्द्रियाँ हैं । सर्वप्रथम जीव को एक इन्द्रिय मिलती है । पहली स्पर्शेन्द्रिय हैं । जो शीत उष्ण, खुरदरा (रफ), स्निग्ध (स्मूथ) आदि स्पर्शों का अनुभव कराती है वह स्पर्शेन्द्रिय है । पृथ्वी के पार्थिव जीव पत्थरादि, पानी के, अग्नि के, वायु के और वनस्पतिकाय के इन पाँचों स्थावर जीवों को पहली स्पर्शेन्द्रिय होती है । अतः ये एकेन्द्रिय जीव कहलाते हैं । ये एकेंन्द्रिय स्पर्श से सब कुछ अनुभव करते हैं । इसके बाद आगे विकास होता है- दूसरी इन्द्रिय मिलती है । तब १ ली और २ री दो मिलाकार जीव दोइन्द्रिय कहलाता है । उसे स्पर्शेन्द्रिय - त्वचा - चमडी और दूसरी रसनेन्द्रिय- जीभ
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मिलती है । जीभ—रसना से आहार के रसास्वाद का अनुभव करता है । ऐसे दोइन्द्रिय जीवों में- शंख,
संसार
कोडी - जलो, कृमि, अलसी आदि जीवों की गिनती होती है । ये भी सभी जीव हैं । स्वकर्मानुसार ऐसा शरीर धारण करते हैं। और अपने आयुष्यकर्मानुसार काल प्रमाण जीवन जीते हैं ।
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इसके बाद जीवों का इन्द्रियां प्राप्त करने के क्षेत्र में आगे विकास होता है । आगे बढता हुआ जीव तीसरी इन्द्रिय प्राप्त करता है । पहली दो और तीसरी घ्राणेन्द्रिय- नासिका प्राप्त होती है। इससे सुगंध - दुर्गन्ध को जीव ग्रहण करता है । इन तीन इन्द्रियवाले जीव संसार में अनेक प्रकार के हैं। जिनमें चिंटी, मकोडे, जू, दीमक, अनाज में होनेवाले कीडे, विष्ठा - मल में होनेवाले कीडे, कुंथु इयल, खटमल आदि अनेक प्रकार के तेइन्द्रिय जीव हैं जो सर्वत्र दृष्टिगोचर होते हैं ।
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