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त्रस जीवों का स्वरूप
तेजोवायुद्विन्द्रियादयश्च त्रसाः ॥२-१४ ॥ गति त्रस, तथा लब्धि त्रस इन दो प्रकार के त्रस के भेदों में- तेज और वायु के जीव लब्धित्रस भेदवाले जीव हैं । त्रास दुःख–पीडा से बचने के लिए जो गति आदि कर सके वे त्रस जीव हैं । इनमें २, ३, ४ और पाँच इन्द्रियवाले सभी जीवों की गणना त्रस की संज्ञा के अन्तर्गत की गई है । इन्द्रिय की अपेक्षा से दो विभाग किये गए हैं । एक विकलेन्द्रिय
और दूसरा-सकलेन्द्रिय । विकल का अर्थ है अधूरा-अपूर्ण । और सकल अर्थात् पूर्ण-संपूर्ण पूरा । जगत में कुल ५ इन्द्रियाँ है । अतः जिनको पाँचो इन्द्रियाँ पूरी हो वह पंचेन्द्रिय या सकलेन्द्रिय की कक्षा का जीव कहलाता है। और जिनको पाँच से कम २, ३, और ४ इन्द्रियाँ होती हैं वे जीव विकलेन्द्रिय की कक्षा के कहलाते हैं।
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१. स्पर्शेन्द्रिय, २. रसनेन्द्रिय, ३. घ्राणेन्द्रिय
४. चक्षुरिन्द्रिय, ५. श्रवणेन्द्रिय
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आध्यात्मिक विकास यात्रा