SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाँचों प्रकार के सूक्ष्म केन्द्रिय जीव होने के कारण दृष्टिगोचर नहीं होते हैं । जिस तरह डिब्बी में काजल भरी हुई रहती है । वैसे संपूर्ण १४ राजलोक के असंख्य योजनों के क्षेत्र में सर्वत्र पाँचों प्रकार के सूक्ष्म जीव भरे पडे हैं । एक तिल जितनी भी जगह खाली नहीं है, जहाँ जीव सृष्टि न हो । ये सभी सूक्ष्म स्थावर जीव सिर्फ अन्तर्मुहूर्त के ही आयुष्यवाले होते हैं । अन्तर्मुहूर्त अर्थात् २ घडी ४८ मिनिट का काल होता है । पृथ्वी-आकाशपानी - अग्नि और वायु इन पाँचों में प्रत्येक की तरह एक शरीर में एक जीव रहता ही है, फिर भी है सूक्ष्म । सूक्ष्म दृष्टिगोचर नहीं होते हैं । अदृश्य हैं । वनस्पति में सूक्ष्म साधारण के भेद में एक शरीर में अनन्त जीव होते हैं । अन्य पाँच स्थावर और साधारण वनस्पति में इतना भेद है। एक तरफ एक ही शरीर और वह भी अत्यन्त सूक्ष्म और उसमें भी अनन्त जीवों का मिलकर रहना यह सूक्ष्म साधारण वनस्पति के जीवों की विशेषता है । व्याख्या में कहा है कि- “जेसिमणंताणं तणु एंगा साहारणा तेउ” जहाँ अनन्त जीवों को एक साथ रहने के लिए शरीर एक ही हो वे साधारण वनस्पति के जीव कहलाते हैं । उसमें वापिस सूक्ष्म और स्थूल के २ भेद हैं। सूक्ष्म साधारण–निगोद के गोले रूप हैं और स्थूल (बादर) साधारण आलु–प्याज-लसून— गाजर-मूला— शकरकंद - आदु - अदरक- -अंकुरित कोमल फल, किसलय पत्ते, आदि अनेक प्रकार के हैं । ये स्थूल - बादर होने से दृष्टिगोचर होते हैं । इस तरह जीवों का सूक्ष्म स्वरूप में और स्थूल स्वरूप में अस्तित्व सदाकाल ही है । संख्या की दृष्टि से ये अनन्त की संख्या में है । काल की दृष्टि से भी इन जीवों की सत्ता अनन्तकाल है । ऐसा जगत है, इस प्रकार का ब्रह्माण्ड है, जिसे लोकस्वरूप कहते हैं । जगत मात्र अजीव का ही है ऐसा नहीं जीवसृष्टि भी बडी भारी है । संसार १८१
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy